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ताला तोड़कर मां-बाप और दो भाइयों की हत्या की थी

1984 में दिल्ली समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से एक साजिश के तहत करवाए सिख विरोधी दंगों की जांच प्रक्रिया आज भी जारी है। उस वक्त उत्तर प्रदेश के कानपुर में शादी के कुछ दिन बाद मायके आई महिला के घर पर उपद्रवियों ने हमला कर दिया था। अपने परिजनों की जान बचाने के लिए उन्होंने घर में बाहर से ताला लगा दिया। दंगाइयों ने ताला तोड़कर पिता और अन्य परिजनों की हत्या कर दी। जबलपुर गई एसआईटी को पीड़ित महिला ने यह आपबीती सुनाई। इसके अलावा दो और परिवारों के बयान दर्ज किए गए। टीम शनिवार को वापस आई। सोमवार को एसएसपी टीम के साथ मामले की समीक्षा करेंगे।

1984 में कानपुर के दादानगर, अर्मापुर और निराला नगर में दंगाइयों ने लूटपाट कर लोगों को मौत के घाट उतारा था। जबलपुर निवासी कंवलजीत कौर का घर दादानगर में था। उन्होंने बताया कि पिता जोगेंदर सिंह, मां शीला रानी, दो भाई दलजीत और सत्यजीत की दंगाइयों ने हत्या कर दी थी। कंवलजीत ने टीम को बताया कि उनकी शादी हो चुकी थी और वह अपने मायके आई हुई थीं। परिजनों को बचाने के लिए घर में बाहर से ताला लगाकर इलाके की अन्य महिलाओं के साथ खड़ी हो गई थीं। दंगाइयों ने घर का ताला तोड़कर घटना करने के साथ लूटपाट को भी अंजाम दिया। कंवलजीत के पति रिटायर डिप्टी एसपी हैं।

मकान घेर तीन को मौत के घाट उतारा 
एसआईटी ने जबलपुर में भूपेन्दर के भाई कवलजीत खनुजा और भाभी कमलजीत के भी बयान दर्ज किए। वह 1984 में यू ब्लॉक निराला नगर में जूते चप्पल की दुकान चलाते थे। उन्होंने बताया कि वहां पर तीन मंजिला इमारत में 27 कमरे थे, जिनमें 11 परिवार रहते थे। उस समय दंगाइयों ने भाई भूपेन्दर सिंह, मकान मालिक के बेटे सतवीर सिंह और एक अन्य किराएदार रक्षपाल सिंह की हत्या करने के बाद शवों को जला दिया था। कवलजीत ने कुछ आरोपितों के नाम भी एसआईटी को बताए हैं।

फैक्टरी के अंदर तीन की हत्या 
एसआईटी ने ओईएफ अर्मापुर में कार्यरत रहे तीन कर्मचारियों के भी बयान दर्ज किए हैं। दंगे के बाद तीनों कर्मचारियों ने जबलपुर ट्रांसफर ले लिया था। अब वहीं रह रहे हैं। उन्होंने एसआईटी को बताया कि एक नवंबर की सुबह आठ बजे वह काम पर पहुंचे थे। आधे घंटे बाद ही छुट्टी हो गई। सभी कर्मचारी निकल पाते, इससे पहले ही सैकड़ों लोगों ने लाठी-डंडे, लोहे की रॉड से सरदारों पर हमला कर दिया। तीन कर्मचारियों कुलवंत सिंह, मोहन सिंह व आरएस अरोड़ा को पीटकर मार दिया गया था।

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