टीके की जगी उम्मीद
सिद्धार्थ शंकर-
एस्ट्राजेनेका के ट्रायल में साइड इफेक्ट कोविड-19 दवा के कारण नहीं हुआ था। इस बात का खुलासा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी रिपोर्ट में किया है। ाइड इफेक्ट के कारण इस दवा का परीक्षण कुछ दिन के लिए रोक दिया गया था। बताया गया कि ट्रायल में एक शख्स को दवा देने के बाद उसे रीढ़ संबंधी बीमारी शुरू हो गई थी, जिसे ट्रांसवर्स माइलिटिस कहा जाता है। लेकिन अब दस्तावेजों से पता चला है कि ये बीमारी शायद ही कोविड 19 वैक्सीन देने से हुई हो। इस बारे में तथ्य नहीं मिले हैं कि ट्रायल के दौरान दवा देने से प्रतिभागी को दिक्कत हुई। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की इस दवा का परीक्षण अब ब्रिटेन, ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका में दोबारा शुरू हो गया है, हालांकि अमेरिका में अभी शुरू नहीं हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने भरोसा दिलाया है कि अगले साल की पहली तिमाही तक टीका आ जाएगा। भारत में जिस तेजी के साथ टीकों के परीक्षण चल रहे हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि भारत जल्द ही इस दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल करने के करीब है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के सहयोग से भारत बायोटेक इंटरनेशनल ने जो स्वदेशी टीका-कोवैक्सीन विकसित किया है, उसके दूसरे चरण का परीक्षण शुरू हो चुका है। अच्छा संकेत यह है कि अभी तक इसका कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है। इसलिए यह टीका भी इस साल के अंत या अगले साल के शुरू में उपलब्ध हो सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना जैसी महामारी का टीका खोजना कोई आसान काम नहीं है। अमेरिका, चीन जैसे कई बड़े देश इस काम में जुटे हैं। रूस ने टीका बना लेने और परीक्षण के हर स्तर पर खरा उतरने का दावा किया है। अगले साल तक दुनिया के कई देशों के टीके बाजार में आने की संभावना है। टीका तैयार करने की प्रक्रिया की जटिल होती है और इसे कई तरह के परीक्षणों से गुजारना होता है। इसमें वक्त और पैसा दोनों ही काफी खर्च होते हैं। ऐसे में इस काम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता, वरना टीके की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। टीका चाहे जो भी बनाए, उसकी सफलता का मापदंड तो यही होगा कि वह अधिकतम कोरोना संक्रमितों को ठीक करे। अभी जिन टीकों पर काम चल रहा है, वे कितने सुरक्षित और कारगर होंगे, इसका अभी कोई सटीक अनुमान लगा पाना मुश्किल है। इसकी एक वजह यह भी है कि कोरोनाविषाणु को लेकर जो नई-नई जानकारियां मिल रही हैं और जिस तेजी से यह विषाणु नए-नए रूपों में परिवर्तित हो रहा है और इसके जो नए-नए लक्षण सामने आ रहे हैं, वह भी वैज्ञानिकों के लिए कम बड़ी चुनौती नहीं है। भारत जैसे एक सौ तीस करोड़ की आबादी वाले देश में सभी को एक साथ टीका उपलब्ध करा पाना संभव नहीं है। जाहिर है, इसके लिए प्राथमिकता तय करनी होगी और उसी के अनुरूप कदम उठाने होंगे। आबादी का बड़ा हिस्सा तो टीका खरीद पाने में सक्षम भी नहीं है। इसलिए सरकार ने तय किया है कि टीका सबसे पहले उन्हें दिया जाएगा, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी, भले वे इसे खरीद पाने में सक्षम न भी हों। बड़ी संख्या में स्वास्थयकर्मियों सहित ऐसे लोग हैं जो कोरोना से लोगों को बचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। इसके अलावा बुजुर्गों और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को भी बचाना है। अक्सर यह देखने में आता है कि सब कुछ होते हुए भी हम कई बार कुप्रबंधन और लापरवाही के शिकार हो जाते हैं और इससे जनहित के अभियानों को धक्का लगता है। कोरोना टीका आए और देश के हर नागरिक तक पहुंचे, इसके लिए सरकार को अभी से कारगर रणनीति पर काम शुरू कर देना चाहिए।