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जाने कहा मिली थीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां?

नई दिल्ली। जाने कहा मिली थीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां? जापान की राजधानी टोक्यो स्थित रेनकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी की ओर से जापानी भाषा में 2005 में भारत सरकार को लिखे गए एक पत्र का हालिया अनुवाद सामने आया है। इसके आधार पर सुभाष चंद्र बोस के परिजनों ने आरोप लगाया है कि नेताजी की मौत की जांच के लिए लगाए गए मुखर्जी आयोग ने उनकी अस्थियों के डीएनए टेस्ट की मंजूरी को नजरअंदाज किया।

नेताजी के परिवार का कहना है कि इस चूक की वजह से ही उस जांच के नतीजे बदले थे। चिट्ठी के मुताबिक, न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी आयोग को उन अस्थियों डीएनए जांच की अनुमति दी गई थी, जिसके कलश के संरक्षण की जिम्मेदारी रेनकोजी मंदिर के पुजारी के पास थी। ऐसा माना जाता है कि इस कलश में ही सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां हैं।

जापान के मंदिर से मिले कलश में थीं नेताजी की अस्थियां?

हालांकि, कोई कारण बताए बिना पत्र के इस हिस्से का अनुवाद नहीं किया गया था और बोस के लापता होने पर न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के साथ साक्ष्य के तौर पर एक अंग्रेजी संस्करण अटैच किया गया था कि जिसमें लिखा था, ‘‘मंदिर अधिकारियों के मौन रहने के कारण डीएनए जांच के मुद्दे पर आयोग आगे नहीं बढ़ सका।’’ मुखर्जी आयोग ने बाद में इसी तथ्य का इस्तेमाल यह निष्कर्ष निकालने के लिए किया कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं थीं, जिससे इन अटकलों को बल मिलता है कि वह हादसे में बच गए और एक संन्यासी बन गए या रूस की जेल में उन्हें कैदी के रूप में रखा गया।

परिजनों ने मौत की जांच करने वाले आयोग पर लगाए आरोप

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला था कि आजाद हिंद फौज में बोस के करीबी विश्वासपात्रों सहित चश्मदीदों के बयान के उलट बोस की मृत्यु ‘‘विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।’’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जापान के मंदिर में मिली अस्थियां नेताजी की नहीं हैं। आजाद हिंद फौज के कर्नल हबीब-उर-रहमान सहित चश्मदीदों ने कहा था कि बोस की मृत्यु अगस्त 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में हुई थी।

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माधुरी बोस ने कहा, ‘‘हमें मुखर्जी आयोग पर बहुत विश्वास था और हमें आशा की एक किरण नजर आई थी कि नेताजी के लापता होने के बारे में सच्चाई अंतिम रिपोर्ट के साथ सामने आएगी। हालांकि रिपोर्ट में कई स्पष्ट गड़बडि़यों ने हमें इसे फिर से देखने के लिए मजबूर किया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने पाया कि जापान का मंदिर डीएनए जांच चाहता था और हमने कभी जांच नहीं की।’’

स्वतंत्रता सेनानी बोस के भाई शरत बोस की पोती माधुरी बोस के मुताबिक, ‘‘मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में कुछ गड़बडि़यां पाई गई थीं। दरअसल, न्यायमूर्ति मुखर्जी की जांच रिपोर्ट के आधिकारिक अंग्रेजी संस्करण में जापानी भाषा में लिखे पुजारी के पत्र के कई पैराग्राफ नहीं मिले थे। माधुरी ने बताया कि इसके बाद उन्होंने हाल में इनका फिर से नया अनुवाद शुरू किया।

जापानी भाषा के एक विशेषज्ञ की ओर से किए गए नए अनुवाद से पता चलता है कि चिट्ठी के छोड़े गए अंशों में 427 वर्ष पुराने बौद्ध मंदिर रेनकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी निचिको मोचिजुकी ने लिखा था, ‘‘मैं जांच में अपना सहयोग देने के लिए सहमत हूं। पिछले साल (2004 में) (जापान के लिए तत्कालीन भारतीय राजदूत) एमएल त्रिपाठी के साथ बैठक में इसी पर सहमति बनी थी।’’

हालांकि, चिट्ठी के इस ट्रांसलेशन की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की जा सकती। राष्ट्रमंडल सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुकीं माधुरी बोस ने बोस बंधुओं पर किताबें भी लिखी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमें समझ नहीं आता कि इस इजाजत के बारे में पहले खुलासा क्यों नहीं किया गया या डीएनए जांच की अनुमति क्यों नहीं दी गई।’’ मुखर्जी आयोग ने 2006 में संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी।

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