धर्म - अध्यात्म
जानिए इसका असर, गुरु और राहु के कारण बनता है चाण्डाल योग
कुंडली में गुरु और राहु एक साथ एक ही भाव में होते हैं तो गुरु चाण्डाल योग बनता है। राहु और गुरु का संबंध होने से व्यक्ति अपने गुरु का सम्मान नहीं करता है। यहां जानिए गुरु और राहु के इस योग का कैसा असर होता है…
1.यदि किसी शिष्य की कुंडली में राहु गुरु से ज्यादा बलशाली है तो शिष्य गुरु के काम को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं। ऐसे लोग गुरु की बात को ही गलत साबित करते हैं।
2.यदि किसी गुरु की कुंडली में चाण्डाल योग होगा तो उसे शिष्यों की उपस्थिति में ही अपमानित होना पड़ सकता है।
3.यदि राहु बहुत शक्तिशाली नहीं है, लेकिन गुरु ग्रह से युति है तो भी व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां आती हैं।
4.यदि किसी गुरु की कुंडली में राहु और गुरु की युति है और गुरु बलवान है तो वे अच्छे गुरु सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बड़े काम या शोध करवाने में समर्थ हो जाते हैं।
5.यदि शिष्य की कुंडली में चाण्डाल योग है और राहु से ज्यादा बलवान गुरु ग्रह है तो वह शिष्य गुरु की आज्ञा लेते हैं या गुरु के आशीर्वाद से कई उल्लेखनीय काम करते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है।
6.राहु शक्तिशाली ग्रह है और बहुत कम प्रतिशत में गुरु का प्रभाव राहु के प्रभाव को कम कर पाता है।
7.गुरु चाण्डाल योग का एकदम उल्टा असर तब होता है, जब गुरु और राहु अलग-अलग एक दूसरे से सप्तम भाव में स्थित होते हैं और बृहस्पति के साथ केतु स्थित हो। बृहस्पति के प्रभावों को बढ़ाने में केतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गुरू से केतु की युति के कारण व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ गुरु या श्रेष्ठ शिष्य प्राप्त करता है। इनको जीवन में श्रेय भी मिलता है। गुरु या शिष्य आगे बढ़ाने के लिए योगदान देते हैं।