जनता के पैसो से नेताओं की बल्ले बल्ले
स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
लोकतंत्र के पीछे की सच्चाई को समझने की कभी कोशिस की है आपने? नहीं! करना भी नहीं चाहिए क्यों कि लोकतंत्र के चूहे लोकतंत्र को कुतर कुतर कर खा रहे हैं और आप जिस लोकतंत्र की रस्सी पकड़ कर लटक कर आजादी के सपने देखते हैं वह रस्सी कब टूट जाये ये किसी को पता नहीं चलने वाला!
राजनीति आज समाज सेवा नहीं बल्कि व्यवसाय बन चुका है आज युवा भी राजनीति में समाज सेवा के लिए नहीं बल्कि पैसा कमाने के लिए तेजी से भाग रहा है आज आपको भारत के उन आंकड़ों की बात कराते हैं कि जहां राजनेताओं पर होने वाला खर्च कितना है पूरे भारत के अंदर राजनेताओं पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं। यह आंकड़ों की जुबानी नही सच है कि आखिर आपके और हमारे दिए गए टैक्स का पैसा कहां जा रहा है? गौर करें तो जो जनसेवकों पर जनता के नाम पर प्रतिवर्ष सैलरी भत्तों को लगाकर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन जनता को मिलता क्या है सिर्फ आश्वासन। राजनेता वोट तथा अपनी कुर्सी के लिए आम जनता की सेवा के नाम पर भी अनाप सनाप पैसों का बंदर बांट करते देखे गये हैं। कितनी मेहनत से मध्यम वर्ग अपने टैक्स को अदा कर अपने सुख साधनों की तिलांजलि देकर यह पैसा राजकोष में जमा करवाता है और सत्ताधारी उससे पार्क, मुर्तियां तथा अपने लोगों को किसी महापुरुष के नाम को जोड़ते हुए खैराती बांट देता है। राजनीति के नाम पर देश का कितना रुपया खर्च हो रहा है यह इसकी बानगी भर है आखिर लोकतंत्र में सबको अधिकार है कि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जान सकते हैं कि आपके क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं, कुल मिलाकर लगभग यह बजट देश के माननीय सदन में मेजें थपथपा कर तुंरत बढ़ा देते हैं लेकिन जनता की मांगों पर आज भी संसद और विधानसभाओं में काफी समय लगता है आंकड़े चैकाने वाले हैं और सच भी यही है।