चंदाखोरी को लेकर लाहौर हाईकोर्ट सख्त

लाहौर। जेहाद या धर्मयुद्ध के नाम पर जनता को उकसा कर पाकिस्तान में होने वाली चंदाखोरी को लेकर लाहौर हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि जिहाद के नाम पर पाकिस्तान में किसी व्यक्ति या संगठन को चंदा जुटाने की इजाजत नहीं है। यह राष्ट्रद्रोह है। इस टिप्पणी के साथ ही लाहौर हाईकोर्ट ने आतंकी संगठनों की मदद करने के लिए चंदा जुटाने के दोषी दो आतंकियों की अपील नामंजूर कर दी।
लश्कर ने ही 2008 में मुंबई पर भयावह आतंकी हमला किया था
वह लाहौर की कोट लखपत जेल में सजा काट रहा है। 71 साल का सईद संयुक्त राष्ट्र का घोषित आतंकी है। उस पर अमेरिका ने एक करोड़ डालर का इनाम घोषित कर रखा है। उसे आतंकियों के वित्त पोषण (जमततवत पिदंदबपदह) के पांच मामलों में 36 साल की सजा सुनाई गई है। जेयूडी लश्करे तैयबा का सहयोगी संगठन है। लश्कर ने ही 2008 में मुंबई पर भयावह आतंकी हमला किया था, जिसमें छह अमेरिकों समेत 166 लोग मारे गए थे। हाईकोर्ट का यह फैसला बुधवार को तहरीके तालिबान पाकिस्तान की अपील पर आया।
संगठन के आतंकी मोहम्मद इब्राहिम और उबैदुर रहमान को लाहौर से 200 किलोमीटर दूर सरगोधा से गिरफ्तार किया गया था। इस माह के आरंभ में उन्हें आतंकवाद निरोधक अदालत ने आतंकी वित्त पोषण के मामले में दोषी ठहराते हुए पांच-पांच साल के कैद की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने दोनों आतंकियों की अपील खारिज करते हुए कहा कि इस्लामिक देश पाकिस्तान में लोगों को जिहाद के नाम पर उकसा कर चंदा एकत्रित करने की इजाजत नहीं है। इसे राष्ट्रद्रोह माना गया है।
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लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस अली बकर नजफी की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यदि जरूरी हो तो किसी घोषित युद्ध के लिए चंदा जुटाना सरकार का काम है। ये चंदा किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा नहीं जुटाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि टीटीपी एक प्रतिबंधित संगठन है। इसने न केवल सरकारी संस्थानों को नुकसान पहुंचाया है बल्कि उच्चाधिकारियों को भी निशाना बनाया है। इसने पूर्व में देश में आतंकवाद को भी बढ़ावा दिया। मुंबई हमले के सरगना व जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद को भी आतंकियों की वित्तीय मदद करने के आरोप में सजा सुनाई जा चुकी है।