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घोड़े की मूर्ति ने बढ़ाया ओडिशा की राजनीति में उबाल, विपक्ष ने खोला मोर्चा

भुवनेश्वर. ओडिशा में घोड़े दुर्लभ हैं, और शायद ही कभी होता है कि प्राचीन मंदिरों की मूर्तियों को छोड़कर घोड़े की वजह से राज्य की सियासी गर्मी बढ़ जाए. हालांकि ओडिशा सरकार के एक फैसले से राज्य की राजनीति में उबाल देखने को मिल रहा है. दरअसल मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की सरकार ने राजधानी भुवनेश्वर में सौंदर्यीकरण के लिए एक प्रमुख चौराहे से घोड़े की एक आधुनिक मूर्ति को दूसरी जगह शिफ्ट करने की योजना बनाई है. विपक्षी दलों ने मूर्ति को किसी भी अन्य स्थान पर शिफ्ट करने का विरोध किया है और भुवनेश्वर के लोग भी इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं.
भुवनेश्वर के मास्टरकैंटीन चौराहे पर स्थित 33 साल पुरानी घोड़े और योद्धा की मूर्ति के लिए भावनाओं का तूफान तब उमड़ा, जब राज्य सरकार के संस्कृति विभाग ने पिछले हफ्ते भुवनेश्वर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (बीएससीएल) को अपनी मंजूरी प्रदान की. योजना के मुताबिक पत्थर की मूर्ति को राजभवन स्क्वॉयर शिफ्ट किया जाएगा, ताकि बीएससीएल मास्टरकैंटीन स्क्वॉयर के आसपास सड़कों के चौड़ीकरण और आधुनिक सुविधाएं निर्मित करने का काम शुरू कर सके.
मूर्ति को शिफ्ट किए जाने की खबरें आने के बाद बीजेपी और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. दोनों पार्टियों ने बीजेडी सरकार पर राज्य की कला और संस्कृति का अपमान करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री सुरेश चंद्र रौत्रे घोड़े की मूर्ति के पास धरने पर बैठ गए और कहा कि जब तक वे जिंदा हैं, मूर्ति को शिफ्ट नहीं किया जा सकता. इसके तुरंत बाद साहित्यकार, मूर्तिकार, कलाकार और अन्य हस्तियों ने भी सरकार के शिफ्टिंग प्लान के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी. उनका कहना है कि मूर्ति को हटाना, ओडिशा के हेरिटेज को नुकसान पहुंचाना होगा.
बता दें कि विवादों का केंद्र बनी घोड़े और योद्धा की मूर्ति 13वीं शताब्दी के कोणार्क के सूर्य मंदिर में बनी मूर्ति का प्रतिचित्र है. कोणार्क के सूर्य मंदिर की भुवनेश्वर से दूरी 60 किलोमीटर है. 1964 में ओडिशा सरकार ने कोणार्क के घोड़े और योद्धा की मूर्ति को राज्य का आधिकारिक प्रतीक चिन्ह स्वीकार किया था. मास्टरकैंटीन स्क्वॉयर स्थित घोड़े और योद्धा की मूर्ति को प्रसिद्ध मूर्तिकार रघुनाथ पाणिग्रही ने बनाया, पद्म विभूषण से सम्मानित रघुनाथ पाणिग्रही की कोरोना संक्रमित होने के बाद पिछले महीने मौत हो गई.
1988 में ओडिशा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री जेबी पटनायक ने इस मूर्ति को सार्वजनिक चौराहे पर लगवाया था. भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन के बाहर पत्थर की चौकी पर खड़ी इस मूर्ति ने काफी लोकप्रियता हासिल की है और भुवनेश्वर की पहचान बन गई है.
ओडिशा के संस्कृति विभाग में डायरेक्टर रंजन दास ने कहा, “मास्टरकैंटीन स्क्वॉयर के पास सड़कों को चौड़ा करने की योजना है, जहां एक फ्लाईओवर के साथ मल्टीमॉडल हब बनाया जाना है. एक बार ये निर्माण हो जाने के बाद घोड़े और योद्धा की मूर्ति का दिखना कम हो जाएगा. हो सकता है कि लोगों को दिखाई ना दें. इसलिए मूर्ति को किसी और चौराहे पर शिफ्ट करने का आदेश दिया गया, ताकि इसे संरक्षित किया जा सके.”
हालांकि शिफ्टिंग का विरोध कर रहे लोग चाहते हैं कि मूर्ति को उसके स्थान पर ही रहने दिया जाए. जगन्नाथ संस्कृति के जाने माने शोधार्थी प्रफुल्ल रथ ने कहा, “भुवनेश्वर शहर की पहचान के साथ ये मूर्ति जुड़ी हुई है. राज्य सरकार फ्लाईओवर और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण मूर्ति को उसके स्थान पर बनाए रखने के साथ क्यों नहीं कर सकती. हेरिटेज को नुकसान पहुंचाकर आधुनिकीकरण की योजनाओं को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.”

बीजेपी नेता और केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, “ओडिशा के जाने माने लोग सरकार द्वारा स्मारक को शिफ्ट करने के प्लान से आहत हैं. यह स्मारक हमारे हेरिटेज का प्रतीक है. ओडिशा सरकार को लोगों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और मास्टरकैंटीन चौराहे के सौंदर्यीकरण का काम स्मारक को हटाए बिना होना चाहिए.”
दिलचस्प है कि ओडिशा के इतिहास में घोड़े दुर्लभ रहे हैं, जैसा कि राज्य की राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग. ऐसे में घोड़े की मूर्ति को शिफ्ट करने की योजना के विरोध ने राज्य सरकार को उलझन में डाल दिया है. राजनीतिक विरोध प्रदर्शन जोर पकड़ रहा है. जाहिर है कि घोड़े और योद्धा की मूर्ति को लेकर भुवनेश्वर में सियासी जंग लंबी चलने वाली है.

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