तो क्या लाखों लोग हो जाएंगे बेघर ?

नई दिल्ली – ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है. दुनिया के कई देशों में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर परेशान करने वाले हालात बन रहे है. इसी को लेकर यूएनईपीने एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग के 1.5°C और 2°C के तापमान बढ़ने के परिणामों का विश्लेषण किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, अगर ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूर्व औद्योगिक स्तर की अवधिसे टेंपरेचर 1.5°C और 2°C बढ़ता है तो इसके परिणाम भयावह साबित हो सकते है.
ग्लोबल वार्मिंग से समुद्री लेवल में बढ़ोतरी होगी. अगर 1.5°C तापमान बढ़ता है तो समुद्री लेवल बढ़ने से 60 लाख लोगो के जीवन पर असर पड़ेगा. वही अगर यही तापमान 2°C बढ़ता हैं तो 1 करोड़ 60 लाख लोगो पर इसका असर पड़ेगा. इस आधे डिग्री सेल्सियस तापमान के बढ़ने से coral reef के 99% खत्म होने का खतरा रहेगा.
पर्यावरणविद पंकज सारन ने बताया कि साल 2019 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की थी. उसके मुताबिक ग्लोबल एवरेज टेंपरेचर साल 2019 में पूर्व औद्योगिक स्तरसे 1.1°C अधिक हो चुका है. इस बढ़ते हुए तापमान का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 6 सबसे गर्म साल 2015 के बाद दर्ज़ किए गए हैं, जिनमे 2016, 2019 और 2020 सबसे गर्म साल रहे हैं. भारत में भी हम इसका असर देख पा रहे है.
ग्लोबल टेंपरेचर को 1.5°C से कम रखने के लिए हमें साल 2030 तक हर साल उत्सर्जन में लगभग 7.6% की कमी करनी होगी. ग्लोबल वार्मिंग को कंट्रोल करने के लिए मीथेन के उत्सर्जन में भारी कमी की जरूरत है. मौजूदा तकनीक का इस्तेमाल कर मीथेन के उत्सर्जन में 75% की कमी लाई जा सकती है. इसके साथ ही नेचर कंजर्वेशन की भी जरूरत है.
WMO की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2015-19 तक के पांच सालों का औसतन तापमान और साल 2010-19 तक के दस सालों का औसतन तापमान सबसे अधिक दर्ज़ किया गया है. UNEP की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की 30% आबादी साल के 20 दिनों से अधिक समय तक heat wave के खतरे का सामना कर रही है. भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिक आर के जेनामनी के अुसार, ‘भारत में भी एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स तेज़ी से बढे है. जहां पहले एक सीजन में तेज़ तापमान के हालात दो से तीन दिन तक देखने को मिल रहे थे, वो अब बढ़कर 7 से 8 दिन हो गए हैं.’
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैसेस के उत्सर्जन को माना जा रहा है. साल 2019 में कुल ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड के 59.1 gigatonnes के बराबर था. इसके चलते साल 2019, वर्ष 2016 के बाद अब तक का दूसरा गर्म साल रहा.