ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने से दुनिया के डूबने का खतरा

जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन की समस्या हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से गंभीर होती जा रही है. तभी तो दुनिया तेजी से डूबने की ओर बढ़ रही है और हमें पता तक नहीं चल रहा है. दरअसल, एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते एक दशक में ग्रीनलैंड में 3.5 ट्रिलियन टन बर्फ पिघल गई, जिस कारण समंदर का जल स्तर एक सेंटीमीटर तक बढ़ गया. इससे दुनिया भर में बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया है.
जलवायु परिवर्तन की समस्या हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से गंभीर होती जा रही है. तभी तो दुनिया तेजी से डूबने की ओर बढ़ रही है और हमें पता तक नहीं चल रहा है. दरअसल, एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते एक दशक में ग्रीनलैंड में 3.5 ट्रिलियन टन बर्फ पिघल गई, जिस कारण समंदर का जल स्तर एक सेंटीमीटर तक बढ़ गया. इससे दुनिया भर में बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया है.
दरअसल, शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) के क्रियोसैट-2 सैटेलाइट मिशन का इस्तेमाल कर ग्रीनलैंड के ग्लेशियर की माप की है. इस अध्ययन की रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशन पत्रिका में प्रकाशित हुई है. इस तरह का काम पहली बार सैटेलाइट के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है. तकनीकी भाषा में इसे आइस शीट रनऑफ कहा जाता है.
इस अध्ययन के को-ऑथर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर लिम गिलबर्ट का कहना है कि ऐसा देखा गया कि ग्रीनलैंड में तेजी से बर्फ पिघल रहे हैं. ये अस्थिर तरीके के पिघल रहे हैं. यह एक वैश्विक समस्या है. गिलबर्ट आगे कहते हैं कि अंतरिक्ष से निगरानी के कारण हम संपूर्ण ग्रीनलैंड और करीब-करीब पूरे अर्टांटिका को देख पाए. यह काम धरती पर रहकर कोई टीम नहीं कर सकती थी.
शोधकर्ताओं मे पाया कि बीते चार दशक के दौरान बर्फ के पिघलने से बने पानी में 21 फीसदी का इजाफा हुआ. इस अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2011 और 2020 के दौरान वर्फ के पिघलने के कारण समंदर का जल स्तर वैश्विक स्तर पर एक सेंटीमीटर बढ़ गया. इससे पूरा इकोसिस्टम अव्यवस्थित हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि समंदर के जल स्तर के बढ़ने के कारण दुनिया के जलवायु पर असर पड़ता है. इससे पूरी दुनिया के मौसम में उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है.
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि 2012 और 2019 की गर्मियां सबसे प्रतिकूल रहीं. इन दो गर्मियों में सबसे ज्यादा बर्फ पिघली. ऐसा बीते 40 सालों में नहीं देखा गया था. अध्ययन से पता चलता है कि बीते दशक के दौरान हर साल औसतन 357 अरब टन बर्फ पिघलकर समंदर में पहुंचा.
यह समंदर के एक मिलीमीटर पानी के बराबर है. 2012 में सबसे अधिक 527 अरब टन बर्फ पिघला था. इस कारण धरती के वायुमंडल के पैटर्न में काफी बदलाव देखा गया.
बर्फ पिघलने का मुख्य कारण मौसम की बुरी स्थिति रही है. अत्याधिक लू और अक्सर गर्म हवाओं के चलने के कारण ये बर्फ पिघल रहे हैं.
इस अध्ययन के मुख्य लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ लीड के प्रोफेसर थॉमस स्लैटर का कहना है कि जैसा कि हम दुनिया के अन्य हिस्सों देख रहे हैं ठीक वैसा ही ग्रीनलैंड में हो रहा है. जैसे-जैसे हमारी जलवायु गर्म हो रही है वैसे-वैसे ग्रीनलैंड में अत्याधिक बर्फ पिघलने की घटनाएं बढ़ेंगी. इस तरह से अध्ययन से हमें जलवायु को बचाने के लिए कदम उठाने में सहायता मिलेगी.
इस सदी के अंत भयावह हो सकती है स्थिति
उनका कहना है कि ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने की इस घटना से दुनिया के हर हिस्से में मौसम में भयानक बदलाव देखा जा सकेगा.
इस अध्ययन के एक अन्य सह- लेखक और इंग्लैंड के लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अंबर लीसन का कहना है कि अगर ग्रीनलैंड में बर्फ पिघलने की दर यही बनी रहे तो इस सदी के अंत यानी 2100 तक समंदर के जल स्तर में 3-23 सेंटीमीटर का इजाफा होगा. अगर ऐसा होता है तो दुनिया को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.