गर्भावस्था और प्रसव के बाद मां को अपनी मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना जरूरी
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को तनाव से दूर रहने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय में तनाव न केवल शारीरिक और मानसिक थकान देता है, बल्कि इससे होने वाले बच्चे को भी खतरा हो सकता है. दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान अवसाद यानी डिप्रेशन में रहती हैं, उनके बच्चों की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही बड़े होने पर इन बच्चों में डिप्रेशन का रिस्क उनकी उम्र के अन्य बच्चों की तुलना में ज्यादा बढ़ जाता है.
ब्रिस्टल यूनवर्सिटी के विशेषज्ञों ने स्टडी के आधार पर ये दावा किया है. इस स्टडी में बताया गया है कि अगर प्रसव के बाद महिला को अवसाद होता है, तो उनके बच्चे में ये रिस्क बढ़ जाता है. इसलिए गर्भावस्था और प्रसव के बाद माता-पिता को अपनी मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना जरूरी है.
ये स्टडी 14 साल तक चली. इस दौरान 5,000 से ज्यादा बच्चों की उम्र 24 साल होने तक उनकी मेंटल हेल्थ को नियमबद्ध तौर पर ट्रैक किया गया. स्टडी में पता चला कि जिन बच्चों की माताओं को प्रसव के बाद डिप्रेशन का सामना करना पड़ा था, किशोरावस्था के बाद उनके बच्चों में डिप्रेशन की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई. इसकी तुलना में जिन महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान मानसिक परेशानियां हुईं, उनके बच्चों में डिप्रेशन का लेवल औसत था.
मेडिकल जर्नल बीजे साइक ओपन में प्रकाशित नतीजों के अनुसार लड़कियों में इसका असर ज्यादा देखा गया है. स्टडी की लेखक प्रिया राजगुरु के अनुसार, पिता के डिप्रेशन में होने के कारण भी बच्चे अवसादग्रस्त हो सकते हैं, लेकिन अगर ये सिर्फ एक तरह का अवसाद है, तो बच्चों पर रिस्क कम होता है. उनका कहना है कि किशोरावस्था में बच्चों की मेंटल हेल्थ सही रहे, इसके लिए माता-पिता को पहले से कोशिश करनी होगी.
वहीं इस विषय पर रॉयल कॉलेज ऑफ सायकाइट्रिस्ट के डॉ जोआन ब्लैक कहते हैं कि ‘अगर माता-पिता किसी मेंटल इलनेस से प्रभावित हैं, तो बच्चों को भी भविष्य में मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ सकता है लेकिन इसका उपचार संभव है, बस जरूरत जल्द मदद देने की है.’ रॉयल कॉलेज के ताजा अनुमान के अनुसार, कोरोना काल में 16 से ज्यादा महिलाओं को प्रसव के बाद जरूरी मदद नहीं मिल पाई. उन्हें अवसाद झेलना पड़ा. ऐसे में ये स्टडी महत्वपूर्ण है.
किशोरों की मेंटल हेल्थ कितनी खराब है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि डेली 2,000 से ज्यादा किशोर नेशनल हेल्थ सर्विसकी मानसिक स्वास्थ्य सेवा की मदद ले रहे हैं. NHS के आंकड़ों की मानें तो सिर्फ अप्रैल से जून के बीच ही 18 साल से कम आयु के 1.9 लाख किशोरों को एनएचएस मेंटल हेल्थ के लिए रेफर किया गया था.