गरीब वर्करों का शोषण उम्मीद अब किससे ! सब एक ही थाली के बैगन!
( गुलफाम अली )
कोविड-19 ने इस वक्त पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा है और इस वक्त कहीं भुखमरी तो कहीं महामारी आ गई है हालांकि इस वक्त कोई कोविड़ 19 की वैक्सीन भी तैयार नहीं हो पाई है और इसमें ज्यादातर गरीबों को कोविड-19 नहीं बल्कि उन्हें भुखमरी मार रही है जिस वजह से गरीब व्यक्ति कोविड-19 की परवाह ना करते हुऐ अपने परिवार को पालने के लिए अपनी काम की खोज में निकलते हैं और। ना जाने जैसे तैसे करके अपने परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे है लेकिन अब तो उद्योगपतियों ने भी इन का नाजायज फायदा उठाना शुरू कर दिया है जहां पहले मजदूरों को 8 घंटे का वेतन ₹8300 मिलता था तो आज इस संकट के दौर में कंपनी वाले अपनी मन मानी चलाते हुए हमको 5/6 हजार रूपए देते हैं और अपनी मर्जी से 8 घंटों की वजह 10/12 घंटे काम करवाते है वहीं जब हमारी टीम ने वर्करों से बात की तो वर्करों का कहना है क्या करे साहब अगर हम कम सेलरी का विरोध करे तो हमें कम्पनी से निकाल देते हैं जिसके कारण हम मजबूरी मै अपना परिवार चलाने के लिए इनकी मन मानी झेलते हैं
और कर भी क्या सकते हैं जबकि सभी कंपनियों में 8 घंटे के 83 सो रुपए दिए जा रहे थे लेकिन अब एक तो कोरोनावायरस का कहर और दूसरी ओर इन कंपनी में मनमानी करने वाले ठेकेदारों का वही वर्करों ने आरोप लगाते हुए कहा इनकी शिकायत कहीं बाहर वर्करों ने लेबर कोर्ट में भी को लेकिन वह भी उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई वहा भी हमें आनाकानी कर तारिक दे कर भगा देते हैं अब हम तारिक पे जाए या अपना परिवार चलाएं
अब सवाल (1) । आखिर लेबर कोर्ट ठेकेदारों व कंपनी के सामने बोना साबित क्यों हो रहा है
सवाल (2) जब ये लागू हो गया था 8 घंटे के वर्करों को 8300 रुपए दिए जाएंगे तो उसके बाद भी नियम कानून की धज्जियां क्यों उड़ रही है
सवाल(3) और जब पीड़ित वर्कर अपनी शिकायत को लेकर लेबर कोर्ट जाता है तो उसको सिर्फ और सिर्फ तारीख क्यों दी जाती है
सवाल (4) ठेकेदार व कंपनी के प्लांट हेड पर लेबर कोर्ट मेहरबान क्यों रहता है !