उत्तर प्रदेश

क्यों बार-बार चंबल आते थे डॉ. राम मनोहर लोहिया?

इटावा. देश में समाजवाद की अलख जगाने वाले समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की आज पुण्यतिथि है. उत्तर प्रदेश का इटावा जिला भी डॉ. राम मनोहर लोहिया के कार्य क्षेत्र के प्रमुख केंद्रों में से एक रहा है. लोहिया का प्रकृति से प्रेम का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि वह ज्यादातर चंबल के किनारे ही रुकने में यकीन रखते थे.

आजादी के दौरान चंबल में कमांडर के नाम से लोकप्रिय रहे इटावा के पूर्व सासंद अर्जुन सिंह भदौरिया की पुस्तक ‘नींव के पत्थर’ में इस बात का जिक्र है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया को चंबल की खूबसूरती बेहद पसंद थी. इसी कारण वह जब कभी भी इटावा आया करते थे तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित उदी गांव में चंबल नदी के किनारे स्थापित गेस्ट हाउस में ही रूकते थे. यहां उनको शांत वातावरण में देश के मौजूदा राजनीति के विषय में सोचने-समझने की खासी मदद मिला करती थी.

डॉ. लोहिया अपने साथी समाजवादियों के साथ हमेशा चंबल नदी के किनारे इसी डाक बगंले में रूकना बेहद पंसद भी करते थे, लेकिन आज यह डाक बंगला वक्त की मार सहते-सहते जर्जर हो चला है. 27 फरवरी 1958 को डॉ. राम मनोहर लोहिया उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित उदी गांव के वन विभाग का डाक बंगले में आ कर रुके थे.

इटावा रेलवे रेलवे स्टेशन से उन्हें बिना किसी शोर-शराबे के उदी स्थित डाक बंगले पर ले जाया गया. जहां डाक्टर राम मनोहर लोहिया और उनके साथियों ने मर्मज्ञ कवि शिशुपाल सिंह शिशु के साहित्य को पढ़ने में अपनी खासी रुचि दिखाई. डॉ राम मनोहर लोहिया जब-जब इटावा आए, शिशुपाल सिंह शिशु से जरूर मिलने के लिए उनके घर पर गए. जिस वक्त सर्पदंश से उनकी मृत्यु की सूचना मिली, उस समय भी डॉ. लोहिया शिशु जी के घर पर शोक व्यक्त करने के लिए पहुंचे.

जब-जब डॉ. लोहिया इटावा आए तो चंबल नदी के किनारे रमणीय स्थल का आनंद लेने से अपने आप को रोक नहीं पाए. वहां पर न केवल वह घंटों स्नान किया करते थे. और नदी के किनारे घाटों को देखकर भी आनंद लेने से चूकते नहीं थे. उदी के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार महाराज सिंह भदौरिया बताते हैं कि डॉ. राम मनोहर लोहिया दर्जनों बार इटावा आए. लेकिन अधिकाधिक चंबल नदी के किनारे स्थित इसी गेस्ट हाउस में ठहरे रहे. चंबल नदी का किनारा डॉ. लोहिया का पसंदीदा स्थलों में से एक था.

कमांडर अर्जुन सिंह भदोरिया की पुस्तक ‘नींव के पत्थर’ में डॉ. राम मनोहर लोहिया का चंबल से ताल्लुकात का जिक्र करते हुए लिखा गया है. 27 फरवरी 1958 को होली से कुछ समय पूर्व ही 1 सप्ताह के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया चंबल नदी के किनारे स्थित डाक बंगले में रुकने के लिए आए. डॉ. लोहिया इसी डाक बंगले में 7 दिन तक के लिए रुके. इसी दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुश्री रमा मित्रा अपने एक साथी प्रोफ़ेसर के साथ में इटावा पहुंची. इटावा रेलवे स्टेशन पहुंचने पर जब उनको इस बात की जानकारी हुई कि उनको चंबल नदी के किनारे जाना है तो वह डर गईं. लेकिन जब उनको पूरी जानकारी दी गई तो वह संतुष्ट हुईं और जाने के लिए तैयार हो गईं

इटावा रेलवे स्टेशन से जीप से चंबल किनारे स्थित डाक बंगले तक पहुंचने के बाद जब प्रोफेसर ने अपनी घबराहट की चर्चा डॉ लोहिया से की तो वह काफी देर तक मनोरंजन भी होता रहा. सभी लोग चंबल नदी के तट पर सैकड़ों फीट ऊंची चोटियों और चंबल नदी के स्वच्छ नीली जलधारा को देखकर मुग्ध हो गए. यह लोग एक सप्ताह तक रहे और प्रतिदिन शिशु जी के साहित्य का रसास्वादन करते रहे. डॉ. राम मनोहर लोहिया से प्रतिदिन मिलने के लिए आने वालों में इटावा के पंडित देवी दयाल दुबे, नगरपालिका के सदस्य मोहम्मद इस्माइल, प्रताप सिंह चौहान, महेश्वरी दयाल राजयादा तथा प्रकाश चंद्र सक्सेना आदि रहते थे और लंबा वक्त बिताकर रात को वापस लौट जाया करते थे.

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