क्या कहता है एसपीजी एक्ट 1988?

नई दिल्ली: एसपीजी ने 3 जनवरी को पंजाब पुलिस के पुलिस महानिदेशक को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें बताया गया है कि प्रधानमंत्री को ऐसे आतंकवादी और खालिस्तानी संगठनों से खतरा हो सकता है, जिन्हें पाकिस्तान का समर्थन हासिल है. इसमें इन खालिस्तानी संगठनों के नाम भी बताए गए हैं. एसपीजी पंजाब पुलिस के पुलिस महानिदेशक को इस बात को लेकर भी सावधान करती है कि, जहां फिरोजपुर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली होनी है, वो जगह पाकिस्तान से सिर्फ 14 से 15 किलोमीटर दूर है और इस इलाके में पिछले कुछ समय में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों द्वारा हथियारों और ड्रग्स की तस्करी के लिए ड्रोन्स का सहारा लिया गया है. 2021 में यहां ड्रोनसे संबंधित 59 गतिविधियां हुईं थी. यानी ड्रोन अटैक की आशंका थी.
फिरोजपुर में हुए थे 2 बम धमाके
पिछले साल फिरोजपुर में 2 बम धमाके भी हुए थे, इसलिएएसपीजी ने पंजाब पुलिस केपुलिस महानिदेशकको सारे इंतजाम पहले से तैयार रखने के लिए कहा था और ये भी आशंका जताई थी कि इस दौरे पर फिरोजपुर जैसी घटना हो सकती है.
इस चिट्ठी से पता चलता है कि पंजाब पुलिस के बड़े अधिकारियों द्वारा खतरों को नजरअंदाज किया गया और पहली बार इस तरह की अभूतपूर्व लापरवाही हुई. हालांकि बहुत सारे लोगों के मन में ये सवाल भी है कि, जिस पंजाब सरकार और पुलिस ने केंद्र सरकार की कोई बात ही नहीं मानी, उस राज्य के जिम्मेदार अधिकारियों पर मोदी सरकार कैसे कार्रवाई करेगी? आपको बता दें कि कानून के हिसाब से इस मामले में केंद्र सरकार पंजाब पुलिस के दोषी अधिकारियों पर सीधे कार्रवाई कर सकती है. इसके लिए उसे राज्य सरकार से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है.
एसपीजी Act 1988 का Section 14 कहता है कि अगर प्रधानमंत्री किसी राज्य में जाते हैं तो उस राज्य में उनकी सुरक्षा करने के लिए एसपीजी को जो भी मदद चाहिए होगी, वो मदद उस राज्य की पुलिस को किसी भी कीमत पर करनी ही पड़ेगी. अगर राज्य पुलिस मदद नहीं करती और ये बात सिद्ध हो जाती है तो इस Act के तहत केंद्र सरकार को दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने का अधिकार है. इसके अलावा नियमों के मुताबिक केंद्र सरकार दोषी अधिकारियों की पहचान होने पर उन्हें दिल्ली भी तलब कर सकती है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.
ये भी इत्तेफाक ही है कि जिस एसपीजी एक्ट के तहत पंजाब पुलिस पर कार्रवाई हो सकती है, वो कानून कुछ मायनों में पंजाब की ही देन है. दरअसल ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी और इसी घटना के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वर्ष 1985 में एसपीजी का गठन किया था फिर बाद में वो 1988 में एसपीजी एक्ट भी लेकर आए थे. इस कानून के तहत ये निर्धारित किया गया कि देश के प्रधानमंत्री, उनके परिवार के सदस्यों और राष्ट्रपति की सुरक्षा एसपीजी करेगा. साल 1991 में जब LTTE ने राजीव गांधी की हत्या कर दी, तब इस कानून में बदलाव किए गए और ये तय हुआ कि पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी 10 वर्षों के लिएएसपीजीके पास होगी. ये बदलाव इसलिए हुआ, क्योंकि 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने राजीव गांधी का एसपीजी सुरक्षा कवर हटा लिया था और इसके 2 साल बाद उनकी हत्या हो गई थी. हालांकि 2019 में मोदी सरकार ने ऐलान किया था कि पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों की सुरक्षा एसपीजी उनके कार्यकाल के बाद 5 वर्षों तक करेगी.
ये हैरानी की बात है कि जिस गांधी परिवार ने अपने परिवार के 2 सदस्यों को इस तरह की घटनाओं में खो दिया, आज वो इस मामले पर पूरी तरह चुप है. अब तक ना तो सोनिया गांधी ने इस पर कोई बयान जारी किया है और ना ही राहुल गांधी ने इस घटना की आलोचना की है. बल्कि राहुल गांधी ने एक ट्वीट करके भारत चीन सीमा पर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया और प्रधानमंत्री से पूछा कि क्या वो इस पर कुछ कहेंगे?
पंजाब पुलिस ने इस मामले में पहली प्राथमिकी दर्ज कर ली है, जिसमें 150 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है. हालांकि ये प्राथमिकी भी एक तरह से प्रधानमंत्री और इस देश के संघीय ढांचे का अपमान ही है. इन 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 283 में मुकदमा दर्ज हुआ है. ये धारा तब लगाई जाती है कि जब कुछ लोग सड़क मार्ग को घेर कर किसी कार्य को बाधित करते हैं और इस जुर्म में अधिकतम जुर्माना 200 रुपये है. सोचिए, येप्राथमिकी है या इस देश के संघीय ढांचे के साथ मजाक?
पंजाब सरकार ने भी इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कहा गया है कि घटना वाले दिन प्रदर्शनकारी अचानक फिरोजपुर के सड़क मार्ग पर इकट्ठा हुए थे. इसकी पहले से कोई योजना नहीं थी. पंजाब सरकार ने ये भी कहा है कि वो लापरवाही की जांच एक उच्च स्तरीय कमेटी से भी करा रही है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई और अदालत ने कहा कि अभी इस मामले में केंद्र और पंजाब सरकार अलग-अलग जांच करा रही है, जिसे 10 जनवरी तक रोक देना चाहिए. इसके अलावा अदालत ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को प्रधानमंत्री के दौरे से जुड़े सभी अभिलेख को अपनी कस्टडी में लेने के लिए कहा है. केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले को कोर्ट में दुर्लभतम से दुर्लभतम मामलाबताया गया और ये कहा कि इस घटना के दौरान आतंकवादी हमला भी हो सकता था. सरकार ने अदालत ने मांग की है कि वो इस घटना की जांच एनआईए से कराने के आदेश दे.