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क्या आदिवासी वोटों का रुख बदल सकती है?एक छुट्टी

मध्य प्रदेश की राजनीतिक व्यवस्था दो दल आधारित है. वोटर कांग्रेस से नाराज होता है तो भाजपा के पाले में चल जाता है. लेकिन जहां बहुजन समाज पार्टी या गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का कोई उम्मीदवार होता है तो वोटों का विभाजन हो जाता है. कांग्रेस ने विधानसभा के पिछले आम चुनाव में आदिवासी वोटों का विभाजन काफी हद तक रोक लिया था. फलस्वरूप पंद्रह साल बाद कांग्रेस को मध्य प्रदेश की सत्ता वापस मिली. राज्य में आदिवासियों के लिए कुल 47 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. लगभग चालीस सामान्य सीटें ऐसी हैं भी हैं, जहां आदिवासी वोटर हार-जीत में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र वाले शिवपुरी जिले में सहरिया आदिवासी हैं. लगभग चार साल पहले कोलारस विधानसभा के उपचुनाव में सहरिया आदिवासियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही थी. चुनाव जीतने के लिए सरकार ने आदिवासियों को एक हजार रुपये की नगद राशि दिए जाने का दांव चला. इसके बाद भी सीट कांग्रेस ने जीती थी. श्योपुर जिले में भी आदिवासी वोटर अहम हैं. राजनीतिक दलों की चिंता आरक्षित सीटों से ज्यादा चिंता उन सामान्य सीटों पर आदिवासियों की रहती हैं, जहां वे निर्णायक हैं. भारतीय जनता पार्टी लगातार इन वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए कार्यक्रम चलाती रहती है.

कमलनाथ ने राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार विश्व आदिवासी दिवस नौ अगस्त पर सार्वजनिक अवकाश शुरू किया. पिछले साल भी नौ अगस्त को सार्वजनिक अवकाश था, लेकिन इस साल सार्वजनिक अवकाश की सूची से विश्व आदिवासी दिवस को हटा दिया गया. कमलनाथ के प्रभाव वाले छिंदवाड़ा में भी आदिवासी वोटर निर्णायक माने जाते हैं. लोकसभा के पिछले चुनाव में भाजपा ने कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ के खिलाफ आदिवासी कार्ड का उपयोग किया था. नकुल नाथ की जीत दस हजार वोटों से ही हो पाई. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जब नौ अगस्त के अवकाश को सूची से हटाया तो कमलनाथ ने इसे मुद्दा बनाने में देर नहीं की. छिंदवाड़ा में आदिवासी विधायकों की मांग पर कलेक्टर ने स्थानीय अवकाश घोषित किया और फिर निरस्त कर दिया. जाहिर है कि अवकाश निरस्त करने को लेकर कलेक्टर पर राजनीतिक दबाव होगा. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस पूरे घटनाक्रम को आदिवासियों के सम्मान से जोड़ते हुए आरोप लगाया कि भाजपा आदिवासियों का अपमान कर रही है. जवाब में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस पर घटिया राजनीति करने का आरोप लगाते हुए घोषणा की कि पंद्रह नवंबर को आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती पर सरकारी अवकाश रहेगा और आयोजन भी होगा.

विश्व आदिवासी दिवस के अवकाश को लेकर राजनीतिक दलों के भीतर जिस तरह की समर्थन और विरोध की हलचल रही. उससे यह नतीजा तो निकाला ही जा सकता है कि किसी समुदाय विशेष के वोटों का ध्रुवीकरण सरकारी अवकाश से भी हो सकता है? राज्य में आने कुछ महीनों में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है. खंडवा की लोकसभा सीट पर आदिवासी वोटरों की संख्या काफी है. इस इलाके में ही पिछले दिनों नेमावर हत्याकांड को लेकर भी राजनीति देखी गई थी. आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) भी यहां सक्रिय है. कांग्रेस की चिंता का विषय जयस का बढ़ता प्रभाव है. विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस ने जयस नेता डॉ. हीरालाल अलावा को अपने पक्ष में कर लिया था. अब जयस नेताओं की मांग राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर बढ़ती जा रही है. जयस यदि अपना उम्मीदवार उतारती है तो कांग्रेस के लिए जीत की संभावनाएं कम हो जाती हैं. भारतीय जनता भी एक अवकाश के लिए आदिवासी वोटों को नाराज कर अपने खाते ही सीट नहीं गंवाना चाहती. यही कारण है कि मुख्यमंत्री चौहान ने बिरसा मुंडा की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश देने की घोषणा की है. जिन तीन सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव हैं उनमें झाबुआ जिले की जोबट सीट भी है. इस सीट से कलावती भूरिया कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीती थीं, लेकिन कोरोना से उनका निधन हो गया था.

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