उत्तराखंड

कोरोना के दौर में सिसकती पत्रकारिता

 !स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक

यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी कहानी होगी
कोरोनावायरस हम पत्रकारों के जीवन की सबसे बड़ी कहानी है और एक अरब से ज्यादा लोग हमसे उम्मीद कर रहे हैं कि हम इस दौर में उनके लिए हालत पर नज़र रखें, खबरें देते रहें, सम्पादन का दायित्व निभाते रहें और नाइंसाफ़ियों तथा सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करते रहें.

आप अपने स्तम्भ के लिए गेब्रिएल गार्सिया मारखेज से शीर्षक तभी चुरा सकते हैं जब आप लापरवाह, यहां तक कि गुस्ताख़ और थोड़े सनकी भी हों. और हकीकत यह है कि हम पत्रकार लोग आम तौर पर तीनों होते हैं. इन और दूसरी कमजोरियों के लिए आम तौर पर अगर हमें माफ कर दिया जाता है तो इसलिए कि ज़्यादातर लोग जानते हैं कि हम कहां से आ रहे होते हैं. इतने वर्षों बल्कि दशकों के अपने पत्रकारीय जीवन में किसी ने मेरे साथ रूखा या असभ्य व्यवहार नहीं किया, चाहे उनमें से किसी को मुझसे नाराज होने की वजह क्यों न रही हो.

दंगों, बगावतों, आपदाओं, चुनाव अभियानों के दौरान हम पत्रकारों ने पाया है कि लोग हमारे साथ आम तौर पर अच्छा और सम्मानजनक व्यवहार करते हैं. यहां तक कि उजड्ड लोग भी, जिनका काम हत्या करना ही है, अक्सर हमें भोजन कराते हैं, सुरक्षा देते हैं. इनमें बेशक कुछ अपवाद भी होते हैं. चोरों में भी सम्मान की भावना होती है.

यह सब कहां से आता है? इस विशाल और विविधता से भरे देश के एक अरब से ज्यादा लोगों को किसने सिखाया कि पत्रकार उनके लिए महत्वपूर्ण हैं? कि पत्रकार ऐसे भले लोग हैं जो उनके जीवन के बारे में जो खबरें देते हैं, या वे जो राजनीतिक विचार रखते हैं उन पर भरोसा किया जा सकता है. आप चुनाव अभियानों के दौरान यात्रा करेंगे तो आपको पता चलेगा कि लोग जिन पत्रकारों से कभी परिचित नहीं हुए उनके प्रति वे कितने स्वागत का व उदारता का भाव रखते हैं. गरीब से गरीब गांवों की महिलाएं भी पत्रकारों से किस तरह खुल कर बात करने लगी हैं. भारत के लोगों और उनके पत्रकारों के बीच का यह सामाजिक करार अनूठा है. इसकी ठोस वजह उनका यह विश्वास है कि हम अपना काम बहुत कर्मठता और साहस से करते हैं. यही वजह है कि जब सरकार या पुलिस उनकी बात नहीं सुनती तो देशभर में पीड़ित लोग सबसे पहले मीडिया से ही संपर्क करते

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