किसान नेता वार्ता के लिए तैयार, लेकिन सरकार ठोस लिखित प्रस्ताव के साथ आए’
नई दिल्ली किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ठोस लिखित प्रस्ताव के साथ आए, हम वार्ता के लिए तैयार हैं। केंद्र सरकार के रविवार देर रात वार्ता के भेजे गए प्रस्ताव पर किसान संगठनों ने बुधवार को स्पष्ट कहा कि कृषि कानूनों में संशोधन के लिए हम तैयार नहीं हैं, प्रस्ताव भेज कर बार-बार इसका दोहराव नहीं करें। सरकार के उक्त प्रस्ताव को पहले ही खारिज किया जा चुका है। तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने से कम पर बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।
दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने पत्रकारों से कहा कि हैरानी की बात है कि इतना समय बीतने के बाद भी सरकार को किसानों की मांगें समझ में नहीं आ रही हैं। भाकियू नेता युद्ववीर सिंह ने कहा कि सरकार बार-बार एक ही तरह का प्रस्ताव भेजकर गुमराह करने की कोशिश कर रही है। सरकार यह संदेश देना चाहती है कि किसान जिद पर अड़े हैं, बात करने को तैयार नहीं हैं। हकीकत यह है कि इस बात को कोई नौसिखिया भी समझ सकता है कि सरकार आंदोलन को लंबा खींचना चाहती है जिससे ठंड में आंदोलन टूट जाए।
सरकार आंदोलन को हल्के में लेने की गलती नहीं करे। देश भर के किसान आंदोलन में हिस्सा लेने पहुंच रहे हैं और बगैर कृषि कानूनों को रद्द किए किसान यहां से जाने वाले नहीं हैं। सीमाओं पर ड्यूटी कर रहे जवान भी समझ रहे हैं कि उनका परिवार ठंड में सड़कों पर पड़ा है। इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।
किसान नेता शिव कुमार कक्का ने कहा कि कानून बनाकर सरकार खेतीबाड़ी को कॉरपोरेट के हवाले करना चाहती है। सरकार ने पहले भरोसा दिया कि ठोस प्रस्ताव भेजेंगे। लेकिन 5 दिसंबर को मौखिक मना करने के बाद कानून में संशोधन के प्रस्ताव को भेज दिया। अमेरिका में उक्त नीति के चलते किसान मजदूर बन गए। अब वहां बड़े किसान ठेका खेती कर रहे हैं।
गुरुनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार तीनों कानूनों को लेकर ढीढोरा पीट रही है। हर दिन पृथक किसान संगठनो द्वारा कानून को समर्थन दिखया जा रहा है, जिससे आंदोलन को तोड़ा जा सके। सरकार किसानों को कट्टरपंथी, अलगाववादी, चरमपंथी बता रही है। नए तरीके से आंदोलन को बदनाम किया जा रहा है। सरकार की यह कोशिश कामयाब नहीं होगी। आंदोलन को और तेज करने के लिए किसान नेता राज्यों की ओर कूच करेंगे।