कितने ताकतवर रहे हैं मुसलमान !!
लखनऊ:- उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी पारा चढ़ता ही जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि राज्य में ’80 फीसदी बनाम 20 फीसदी’ चुनाव होगा और भाजपा राज्य में सत्ता बरकरार रखेगी. इस बयान के बाद विपक्ष ने आरोप लगाया है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी राज्य में बहुसंख्यक हिंदू और अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी के बीच ध्रुवीकरण पैदा करना चाहती है. इस टिप्पणी के बावजूद, यह एक तथ्य है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सक्रिय रूप से हिंदू वोट को मजबूत करने की मांग कर रही है.
किसी भी राज्य में कोई धार्मिक या जातीय समूह राजनीतिक रूप से कितना ताकतवर या कमजोर है, इसका सही पता उस जातीय या धार्मिक समूह के विधानसभा में प्रतिनिधित्व यानी संख्याबल से ही चलता है. अगर हम उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के पिछले चुनावी प्रतिनिधित्व के आंकड़ों को देखें तो समझा जा सकता है कि विधानसभा में मुसलमानों का कब-कितना प्रतिनिधित्व रहा है और यह आबादी कितनी ताकतवर रही है या फिर कमजोर.
उत्तर प्रदेश में घटता-बढ़ता रहा है मुस्लिम प्रतिनिधित्व – उत्तर प्रदेश में शुरू से ही मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव देखा गया है. 1970 और 1980 के दशक में समाजवादी पार्टियों के उदय और कांग्रेस के पतन के बाद पहली बार विधानसभा में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि देखी गई थी. 1967 में मुसलमानों का जो प्रतिनिधित्व 6.6% था, वह 1985 में बढ़कर 12% हो गया. हालांकि, 1980 के दशक के अंत में यानी 1991 में राज्य में यह प्रतिशत 5.5% तक कम हो गया. यहां ध्यान देने वाली बात है
बीजेपी के उदय का दौर था. इसी टाइमफ्रेम में चुनावों में मुसलमानों की समग्र भागीदारी भी घट गई. प्रतिनिधित्व में वृद्धि का दूसरा चरण 1991 के बाद शुरू होता है और 2012 में समाप्त होता है, जब मुस्लिम उम्मीदवारों ने 17% विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की. 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में आज़ादी के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीते थे. हालांकि, 2017 में भाजपा की जोरदार जीत के बाद मुस्लिमों प्रतिनिधित्व का आंकड़ा फिर से 1991 के दौर में लौट गया. 2017 के विधानसभा चुनाव में 23 मुस्लिम विधायक चुने गए, जबकि पिछले चुनावों में यह संख्या 69 थी.
क्षेत्रीय पार्टी के उदय से मुसलमानों को होता है फायदा? – उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा के वर्तमान प्रभुत्व ने राज्य की राजनीति में दो क्षेत्रीय दिग्गजों: समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राजनीतिक प्रभुत्व को काफी कमजोर किया है. हालांकि, आंकड़े यही बता रहे हैं कि सपा-बसपा के कमजोर होने से मुस्लिमों का भी यूपी विधानसभा में प्रतिनिधित्व कम हुआ है. 1996 और 2016 के बीच, इन दोनों दलों की राज्य की विधानसभा में सीटों की औसत हिस्सेदारी 63% थी, जो 2017 में 16.4% से कम हो गई. हालांकि, कांग्रेस के प्रभुत्व के समय में भी मुस्लिमों की भागीदारी बहुत अधिक नहीं देखी गई थी.
आंकड़ों की मानें तो सपा और बसपा ने ही मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व करने का उचित स्पेस दिया. 1991 के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने अब तक केवल 8 मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट दिया, जबकि हकीकत यह है कि बसपा और सपा समेत क्षेत्रीय पार्टियों से ही अधिक मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बने. इस तरह से देखा जाए तो जब भाजपा का प्रदर्शन बेहतर होता है तो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है और जब उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियां अच्छा करती हैं तो मुस्लिमों का रिप्रजेंटेशन बढ़ जाता है.
कब-कब कितने मुस्लिम विधायक हुए – आंकड़ों की मानें तो शुरू के चार विधानसभा चुनावों में मुसलमानों का प्रतिशत लगातार तेजी से गिरा. साल 1951-52 में हुए पहले चुनाव में उत्तर प्रदेश विधानसभा में 41 मुस्लिम विधायक जीते थे. वहीं, साल 1957 में 37, 1962 में 30 विधायक तो 1967 के विधानसभा चुनाव में 23 मुस्लिम विधायक जीते थे. 1969 में हुए चुनाव में 29 मुस्लिम विधायकों की जीत हुई थी, मगर 1974 के चुनाव में फिर गिरावट देखी गई और 25 विधायक ही जीत दर्ज कर पाए. हालांकि,
इसके बाद मुस्लिमों के रिप्रजेंटेशन में बढ़ोतरी देखी गई. 1977 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़कर 49 हो गई. आगे कई चुनावों तक कुछ उतार-चढ़ाव के साथ यही सिलसिला चलता रहा, मगर 1991 में राम मंदिर के मुद्दे की वजह से महज 17 मुस्लिम उम्मीदवार ही विधायक बने थे. हालांकि, उसके बाद चुनाव दर चुनाव मुस्लिम विधायकों की संख्या लगातार बढ़ती नजर आ रही थी और एक समय 2012 में मुस्लिम विधायकों की संख्या 69 पहुंच गई, मगर जैसे ही 2017 में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत हुई, यह आंकड़ा 23 पर आ गया. यहां बताना जरूरी है कि 1967 में इतने ही विधायक विधानसभा पहुंचे थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था.
कितनी है किसकी आबादी – मौजूदा वक्त में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या करीब 25 करोड़ होगी. मगर 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश की कुल आबादी करीब 20 करोड़ है. जिसमें करीब 15.95 करोड़ हिंदू हैं, जो कुल आबादी का 79.73 फीसदी हैं. वहीं, मुस्लिमों की जनसंख्या करीब 3.85 करोड़ है, जो कि कुल आबादी का 19.28 फीसदी है. अभी के समय के हिसाब से ही इसे राउंड फिगर में हिंदुओं की आबादी 80 फीसदी और मुस्लिमों की आबादी 20 फीसदी के तौर पर देखा जाता है. यही वजह है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी की बात की.
योगी ने क्या बयान दिया था – योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा था कि आगामी चुनाव 80 बनाम 20 फीसदी के बीच होगा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राष्ट्रवाद, सुशासन और विकास के मुद्दे पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा था कि 80 फीसदी समर्थक एकतरफ होंगे, जबकि 20 फीसदी दूसरी तरफ. मुझे लगता है कि 80 फीसदी लोग सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेंगे जबकि 20 फीसदी ने हमेशा विरोध किया है, आगे भी विरोध करेंगे लेकिन सरकार भाजपा की आएगी. भाजपा फिर ‘सबका साथ सबका विकास’ के अभियान को आगे बढ़ाने का काम करेगी.