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कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा दर्दर क्षेत्र में 2 लाख श्रद्धालुओं ने किया पवित्र स्नान

बलिया उत्तर प्रदेश बलिया के दर्दर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को तकरीबन दो लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र स्नान के साथ ही महर्षि भृगु ऋषि के शिष्य दर्दर मुनि के नाम पर लगने वाला प्रसिद्ध ददरी मेला सोमवार से शुरू हो गया। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दर्दर क्षेत्र में रविवार दोपहर से ही श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। अपर पुलिस अधीक्षक संजय यादव ने बताया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के कहर के बावजूद तकरीबन दो लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। उन्होंने बताया कि स्नान के दौरान कोई अप्रिय घटना सामने नहीं आयी। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि ददरी मेला गंगा की जल धारा को अविरल बनाये रखने के ऋषि-मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण है। किवदंतियों के अनुसार, गंगा के प्रवाह को बनाये रखने के लिये महर्षि भृगु ने सरयू नदी की जलधारा का अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में संगम कराया था। इसके उपलक्ष्य में संत समागम से शुरू हुई परंपरा लोक मेले के रूप में आज तक विद्यमान है।बता दें कि बलिया में कार्तिक पूर्णिमा का अलग ही महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से और दानपुण्य करने से मनुष्य के सारे पाप कट जाते है और उसके परिवार में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। साथ ही महर्षि भृगु के आश्रम में जाकर उनको जल चढ़ा कर अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिलने की कामना करते है। यह क्षेत्र विमुक्त क्षेत्र कहलाता है।
ददरी मेला की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और वर्तमान समय में भी दूर-दूर से आए ऋषि-मुनि एवं गृहस्थ एक महीने तक यहां वास करते हैं। ददरी मेले की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीनी यात्री फाह्यान ने इस मेले का अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है। ददरी मेले की एक और पहचान कवि सम्मेलन के रूप में है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बलिया के इसी ददरी मेले के मंच से वर्ष 1884 में भारत वर्ष की उन्नति कैसे हो विषय पर ऐतिहासिक भाषण दिया था। उसके बाद हर साल भारतेंदु हरिश्चंद्र कला मंच पर देश के नामी-गिरामी कवियों की महफिल सजती आ रही है। हालांकि इस वर्ष वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण कवि सम्मेलन का आयोजन स्थगित कर दिया गया है।

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