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प्रथा के खिलाफ तीन तलाक कानून बनाया; सऊदी अरब से फोन कर तीन तलाक;

कर्नाटक। कर्नाटक में हिजाब पहनकर छात्रा के कालेज पहुंचने पर विरोध के मामले ने तूल पकड़ा तो राजनीति भी गर्मा गई। देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं। स्वाभाविक है राजनीति तो गर्माएगी ही। राजनीति को किनारे रखकर देखें तो इसी देश में ही मुस्लिम महिलाओं के लिए बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाया गया जो आज उनके लिए न्याय पाने का बड़ा हथियार साबित हो रहा है। केंद्र सरकार ने एक साथ तीन तलाक जैसी प्रथा के खिलाफ तीन तलाक कानून बनाया, जिसका असर आज दिख रहा है। तीन तलाक के मामलों में जबरदस्त कमी आई है। मामले सामने आए भी तो मुस्लिम महिलाओं को न्याय के लिए भटकना नहीं पड़ता है।

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पति ने सऊदी अरब से फोन कर तीन तलाक

बाबूपुरवा में रहने वाली युवती की शादी वर्ष 2019 में अजीतगंज निवासी ईशान से हुई थी। पति सऊदी अरब चला गया तो महिला का उत्पीडऩ शुरू हो गया। पति कानपुर वापस आकर व्यापार शुरू कर सके, इसके लिए पांच लाख रुपये मायके से लाने की मांग की गई। रुपये न लाने पर महिला को ससुरालियों ने घर से भगा दिया। पति ने सऊदी अरब से फोन कर तीन तलाक दे दिया। थाने में महिला की एफआइआर दर्ज की गई। भारतीय दूतावास की मदद से पति को वापस भारत लाया गया।

पति व उसके स्वजन को उत्पीडऩ व तीन तलाक कानून के तहत जेल भेज दिया गया। फिलहाल वह जमानत पर है। पीडि़ता का कहना है कि अगर तीन तलाक कानून न बना होता तो उसके साथ अन्याय पर कोई कार्रवाई नहीं होती। तीन तलाक की पीडि़ताओं का मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए ताकि जल्द इंसाफ मिल सके। ऐसी ही कहानी है चमनगंज की रहने वाली महिला की, जिसकी शादी तीन साल पहले हुई थी। पति व उसके परिवार के सदस्य आए दिन परेशान करते थे। छह माह पहले पति ने एक साथ तीन तलाक कह कर घर से भगा दिया। मायके आकर उसने मुकदमा कराया लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

तीन तलाक कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं को इसका लाभ

तलाक…तलाक…तलाक कह बीवी से नाता तोडऩे वालों पर कानून की तलवार लटकने के बाद जहां इस तरह के मामलों में कमी आई है, वहीं पीडि़ताओंं को इसका लाभ भी मिल रहा है। मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि सरकार ने तीन तलाक कानून बनाकर अच्छा कार्य किया है, हालांकि इसको और प्रभावी किया जाए। तीन तलाक कानून बनने से पहले छोटी-छोटी बातों पर तलाक देने के मामले अक्सर सुनाई देते थे। शरई अदालतों में भी तीन तलाक को लेकर बड़ी संख्या में मुकदमे आते थे। कानून बनने के बाद जहां शरई अदालतों में तीन तलाक के मामलों में 40 से 45 प्रतिशत कमी आई है।

बोले जिम्मेदार :

सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के लिए सराहनीय कार्य किया है। तीन तलाक कानून से मुस्लिम महिलाओं को कुछ हद तक राहत मिली है लेकिन, असुरक्षा की भावना खत्म नहीं हुई है। पढ़ी लिखी महिलाएं तो अपने अधिकार की लड़ाई लड़ लेती हैं लेकिन, गरीब व अशिक्षित महिलाओं को सही मार्गदर्शन नहीं मिलता।

कानून बना तो जागरूकता अभियान भी चलने लगे

अब तीन तलाक को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाए जाने लगे हैं। आल इंडिया महिला मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड व आल इंडिया महिला बोर्ड भी एक साथ तीन तलाक को लेकर मुहिम चला रहा है। समझाया जा रहा है कि एक साथ तीन तलाक देना सही नहीं है। आल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल भी कानून बनने की तरफदारी करती है। काउंसिल के महासचिव हाजी मोहम्मद सलीस का कहना है कि कानून बनने से पहले ही उन्होंने एक साथ तीन तलाक दिए जाने के खिलाफ आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को पत्र भी भेजा था। एक साथ तीन तलाक देने पर पाबंदी लगाए जाने की मांग की थी। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने तो कुछ नहीं किया लेकिन, सरकार ने कानून बना मुस्लिम महिलाओं के आंसू पोछने की कोशिश की है।

– तीन तलाक कानून बनने के बाद शरई पंचायत में इस तरह के मामलों में भी कमी आई है। कानून बनने से पहले मोहकमा शरिया दारुल कजा ( महिला शरई पंचायत) में हर महीने 10 से 15 मामले आते थे। अब तीन महीने से छह मामले आए हैं।

– तीन तलाक कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं को इसका लाभ मिला है। तीन तलाक देकर महिलाओं का उत्पीडऩ करने वालों को जेल जाना पड़ रहा है। कानून बनने से तीन तलाक के मामलों में कमी आई है।

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