कर्ण भेदन ( piercing the ear)से मस्तिष्क का होता है विकास
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में जन्म से लेक केमिकल्स ने इसका रंग लाल कर दिया होगा.आखिर क्यों छिदवाया जाता है कान? जानें इसके पीछे की असल वजहरअंत अंत्येष्टि तक कुल मिलाकर 16 संस्कार किए जाते हैं. शास्त्रों में भी इन संस्कारों का महत्व बताया गया है. सभी 16 संस्कारों के अलग-अलग महत्व और विशेषताएं हैं. इन्हीं 16 संस्कारों में से एक कर्ण छेदन ( piercing the ear) यानी कान छेदने के संस्कार है. बाल्यावस्था में ही बच्चों का यह संस्कार करवाया जाता है. ऐसे में जानते हैं कान छेदन संस्कार क्य़ों किया जाता है और इसके पीछे की मान्यता क्या है.
16 संस्कारों से एक है कर्ण भेदन संस्कार
हिंदू धर्म में जिन 16 संस्कारों का वर्णन है उनमे से एक कर्ण छेदन संस्कार है. इस संस्कार के तहत बचपन में भी बच्चों के कान छिदवाए जाते हैं. ऐसे में लड़कों के दाएं और लड़कियों के बाएं कान छिदवाए जाते हैं. इस क्रम में कर्णभेदन मंत्र के उच्चारण के साथ कान में सोने का एक सुनहरा तार पहना दिया जाता है.
कर्ण भेदन संस्कार का महत्व
धार्मिक ग्रंथों में कनछेदन संस्कार का विशेष महत्व बताया गया है. इसे सैंदर्य, बुद्धि और सेहत के लिए खास माना जाता है. मान्यता है कि कर्ण छेदन संस्कार से बच्चों की सुनने की क्षमता में वृद्धि होती है. इसके अलावा इसका वैज्ञानिक पहलू भी है. विज्ञान कहता है कि कान छिदने से लकवा जैसी गंभीर बीमारी का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. दरअसल कान के निचले हिस्से से जुड़े प्वॉइंट मस्तिष्क से जुड़े होता है. इस प्वॉइंट के छिदने परे दिमाग का विकास तेजी से होता है.
कब करवाना चाहिए कर्ण भेदन संस्कार?
हिंदू धर्म शास्त्रों में कर्ण भेदन संस्कार के लिए कई शुभ मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. जिसके मुताबिक बच्चे के जन्म के 12वें या 16वें दिन कान छिदवाना सर्वोत्तम है. साथ ही इस संस्कार को जन्म के छठे, 7वें या 8वें महीने में किया जा सकता है. इसके अलावा अगर इस संस्कार को जन्म के एक साल के भीतर नहीं किया गया हो इसे विषम वर्ष यानी तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष में करवाना चाहिए.