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कई जानवर जलवायु परिवर्तन के कारण अपने अंगों में ला रहे बदलाव

जलवायु परिवर्तन को लेकर हमारे दिल में इंसान पर असर डालने वाली समस्याओं का ख्याल ज्यादा आता है. लेकिन यह समस्या केवल हम इंसानों की नहीं हैं. इससे जानवर भी दो चार हो रहे हैं. उनका जीवन भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. कुछ अपने ठिकाने को बदलने पर मजबूर हैं तो कइयों को अपने जीने का तरीका तक बदलना पड़ा रहा है. हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए कई जानवरों ने अपने अंगों में बदलाव कर लिए हैं जिससे बदलते वातावरण में उनका शरीर बेहतर तरह से काम कर सके.
ऑस्ट्रेलिया की डीकिन यूनिवर्सिटी की पक्षी शोधकर्ता सारा राइडिंग ने इन बदलावों को इसी महीने ट्रेड्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित किया है. इसके मुताबिक कुछ गर्म खून वाले जानवर अपने कुछ अंगों के आकार में बदलाव करने का काम कर रहे हैं. किसी की चोंच बड़ी हो रही है, किसी के पैर तो किसी के कान बड़े हो रहे हैं जिससे उनका शरीर का तापमान गर्म होती पृथ्वी के अनुसार ढल सके.
राइडिंग का कहना है कि प्रमुख मीडिया में जब भी जलवायु परिवर्तन की होती है तब यही सवाल पूछा जाता है कि क्या इंसान इससे बच कर उबर पाएगा, या क्या तकनीकी इसका हल निकाल सकती है. अब भी समय है कि हम यह पहचान लें कि जानवरों (Animals) को भी इन बदलावों का सामना करना होता है और उनके अनुसार ढलना होता है. लेकिन ये बदालव कम समय में हो रहे हैं जबकि आमतौर पर उद्भवकाल में ये ज्यादा समय लेते हैं.
जो जलवायु परिवर्तन हमने पैदा किया है वह इन जानवरों पर बहुत ज्यादा दबाव डाल रहा है. जहां कुछ प्रजातियां इस परिवर्तन में ढलने में सफल हो सकी हैं, तो वहीं कुछ इसमें नहीं ढल सकेंगी. राइडिंग ने पाया है कि जलवायु परिवर्तन एक जटिल और बहुआयामी प्रणाली है जो धीरे धीरे विकसित हुई है. इसलिए यह तय करना मुश्किल है कि अंगों के आकार में बदलाव का एक कारण क्या है. लेकिन ये बदलाव किसी एक जगह पर सीमित नहीं हैं. ऐसा दुनिया भर के भौगोलिक क्षेत्रों में और विविध तरह की प्रजातियों में हो रहा है इसलिए इसमें जलवायु परिवर्तन के अलावा समान कुछ भी नहीं हैं.
मजबूत आकार परिवर्तनविशेषतौर पर पक्षियों में देखा गया है. ऑस्ट्रेलियाई तोते की बहुत से प्रजातियों ने चोंच के आकार को औसतन 4 से 10 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. इस बदलाव का हर साल गर्मियों में बढ़ते ताममान के साथ सकारात्मक संबंध है. इसी तरह से उत्तरी अमेरिका के काली आंखों वाले जंकोस , जो एक तरह के छोटे गाने वाले पक्षी होते हैं, की बढ़ती चोंच का भी ठंडे वातावरण में कम समय वाले चरम तापमान से है. स्तनपायी जीवों में भी कई तरह के बदलाव देखे गए हैं. वुड माइस प्रजाति के चूहे की पूंछ लंबी हो गई है. कुछ छुछंदरों की पूंछ और पैरों की आकार भी बड़ा हो गया है.
राइडिंग का कहना है, “अंगों के आकार का बढ़ना , जितना अब तक हमने देखा है वह बहुत छोटा है. यह करीब 10 प्रतिशत से भी कम है इसलिए इन बदलावों को तुरंत ही नहीं पकड़ा जा सकता है. फिर भी कुछ दिखाई देने वाले बड़े बदलाव भी हो रहे हैं, जिसमें कानों का बढ़ना प्रमुख है, जो हमें बहुत ज्यादा आगे के भविष्य से पहले ही दिखाई देने लेगेगा.”
राइडिंग अब पिछले सौ सालों में ऑस्ट्रेलिया में पाए गए उन पक्षियों के नमूनों का थ्रीडी स्कैनिंग कर अध्ययन करना चाहती हैं जो म्यूजियम में रखे गए हैं. इससे उनकी टीम को यह समझने में आसानी होगी कि किन पक्षियों में जलवायु परिवर्तन के कारण किस तरह के और क्यों बदलाव हो रहे हैं. उनका मानना है कि आकार में बदलाव का मतलब यह नहीं के जीव जलवायु परिवर्तन के मुताबिक ढल कर बच पा रहे हैं उनके मुताबिक यह पता नहीं है कि इन बदलावों के अन्य क्या कारण हैं और क्या सभी जीव बदलाव कर खुद को बचाने में सक्षम हैं भी या नहीं.

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