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ऐसे हिंदुत्वकरण की तैयारी, जिसमें विपक्षी भी बदल देंगे अपना एजेंडा – RSS chief

भोपाल –  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS chief ) हिंदुत्व को राजनीति का केंद्र बिंदु बनाने के बाद अब इसके दूसरे दौर में प्रवेश करने की तैयारी में है। इसमें पूरी राजनीति का ही हिंदुत्वकरण करने का लक्ष्य है। यानी राजनीति की पहचान और तौर-तरीके हिंदुत्व आधारित जीवन मूल्यों, विचारों और चिंतन पर केंद्रित होगी। RSS  के सहयोगी संगठन प्रज्ञा प्रवाह की मध्य प्रदेश के भोपाल में गत दिनों हुई चिंतन बैठक में यही बात निकलकर आई कि केवल वोट के लिए राजनीति करना पाखंड है। नेता लोभ के बजाय सेवा, विकास के पर्याय बनें। व्यसन-दुर्गुणों से दूर रहें, ताकि वे नागरिकों के सामने उच्च आदर्श स्थापित कर सकें।

प्रज्ञा प्रवाह मंथन चिंतन का सार, जीवन मूल्यों पर चलें राजनेता

संघ ने राजनीति के शुद्धीकरण का माध्यम हिंदुत्व को बनाते हुए पहले दौर में भाजपा को इसी मोर्चे पर आगे रखा। इसके नतीजे सामने हैं कि वर्ष 2019 में केंद्र में मोदी सरकार न केवल बरकरार रही, बल्कि सत्ता का जादुई आंकड़ा अकेले भाजपा ने ही हासिल कर लिया। वहीं, हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उसकी ऐतिहासिक जीत हुई। अब संघ हिंदुत्व के दूसरे दौर की तैयारी कुछ ऐसी है कि इसमें सहयोगी दलों और विपक्ष को भी हिंदुत्वकरण की राह पकड़नी होगी। संघ के सूत्र बताते हैं कि हिंदुत्वकरण से आशय राजनीति के शुद्धीकरण और नेताओं के उजले चरित्र से है।

RSS chief
RSS chief

तर्क यही है कि वेद-पुराण, उपनिषद, अन्य ग्रंथों सहित धार्मिक साहित्य में जो उच्च जीवन मूल्य और उत्तम आचरण स्थापित हैं, उनका राजनीति में समावेश करना होगा। राजनीति के चरित्र में गिरावट से बढ़ी निराशा संघ का मानना है कि दशकों तक गैर एनडीए दलों की सरकारों ने जो भ्रष्टाचार किए,

उनके नेताओं के चरित्र में गिरावट ने राजनीति के प्रति नागरिकों को न केवल निराश किया, बल्कि उसकी दशा और दिशा भी प्रभावित की। सत्ता के लिए ही राजनीति की परिपाटी ने हिंदुत्व को भी दशकों तक हाशिए पर रखा। देश हिंदुत्व के साथ है, इसके राजनीतिक संदेश भी लगातार मिल रहे हैं। ऐसे में संघ अब राजनीति के हिंदुत्वकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

राजनीति में लोभ-लालच का स्थान नहीं होना चाहिए

संघ के सूत्रों का दावा है कि जब राजनीति में जीवन मूल्यों की स्थापना होगी, नेताओं के उजले चरित्र से समाज को सकारात्मक संदेश जाएगा, तो दूसरे दलों को भी इसी रास्ते पर आना ही पड़ेगा।

ठीक उसी तरह जैसे अब उन दलों के नेताओं को भी पर्वों और चुनावों में श्रीराम को याद करना ही पड़ता है, जिन्होंने कभी सुप्रीम कोर्ट में उनके अस्तित्व को ही नकार दिया था। स्थापना के 100 वर्ष पर नया उद्देश्य संघ वर्ष 2025 में अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर रहा है।

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संघ का उद्देश्य अब राजनीति का शुद्धीकरण करना है। 16 व 17 अप्रैल को हुए चिंतन का निष्कर्ष यही है कि राजनीति में लोभ-लालच का स्थान नहीं होना चाहिए। प्रज्ञा प्रवाह की चिंतन बैठक में सरसंघचालक डा. मोहन भागवत की उपस्थिति में कहा गया कि देश में 60 लाख गांव हैं, लेकिन थानों की संख्या मात्र 60 हजार है। फिर ऐसी कौन सी शक्ति है, जो इन गांवों में शांति बनाए रखती है। इसकी वजह बताई गई कि यहां जीवन मूल्यों की प्रधानता है। जीवन मूल्य की बदौलत आज भी देश के युवा बुजुर्गाें का सम्मान करते हैं। जीवन मूल्य के कारण ही हमारे गांव-समाज की पंचायत सारे विवाद खुद ही निपटा लेती हैं।

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