ऐक पाप सौ पुण्यों के फल को समाप्त कर देता है

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
महाभारत के युद्ध पश्चात जब “श्री कृष्ण” लौटे तो रोष में भरी रुक्मणी” ने उनसे पूछा ??
युद्ध में बाकी सब तो ठीक था। किंतु आपने “द्रोणाचार्य” और “भीष्म पितामह” जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया ?? ”
श्री कृष्ण” ने उत्तर दिया। ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया। किन्तु उनके किये एक “पाप” ने उनके सारे “पुण्यों” को नष्ट कर दिया। वो कौन से पाप थे ??
जब भरी सभा में “द्रोपदी” का चीरहरण हो रहा था। तब यह दोनों भी वहां उपस्थित थे। बड़े होने के नाते ये दुशासन को रोक भी सकते थे। किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया।
उनके इस एक पाप से बाकी सभी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई। और “कर्ण” वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था। कोई उसके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं गया। उसके मृत्यु मे आपने क्यों सहयोग किया। उसकी क्या गलती थी ??
हे प्रिये! तुम सत्य कह रही हो। वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी किसी को ना नहीं कहा। किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था। तो उसने कर्ण से पानी मांगा कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था।
किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया। इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ “पुण्य” नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया। हे रुक्मणी! अक्सर ऐसा होता है।
जब मनुष्य के आसपास कुछ गलत हो रहा होता है और वे कुछ नहीं करते। वे सोचते हैं की इस “पाप” के भागी हम नहीं हैं। अगर वे मदद करने की स्थिति में नहीं हैं तो सत्य बात बोल तो सकते हैं कि वह कुछ नहीं कर सकते। वह मदद करने की स्थिति में नहीं हैं।
परंतु वे ऐसा भी नहीं करते। ऐसा ना करने से वे भी उस “पाप” के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं। जितना “पाप” करने वाला होता है। “एक पाप से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं” महाभारत के युद्ध पश्चात जब “श्री कृष्ण” लौटे तो रोष में भरी रुक्मणी” ने उनसे पूछा ??
युद्ध में बाकी सब तो ठीक था। किंतु आपने “द्रोणाचार्य” और “भीष्म पितामह” जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया ?? ”
श्री कृष्ण” ने उत्तर दिया। ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया। किन्तु उनके किये एक “पाप” ने उनके सारे “पुण्यों” को नष्ट कर दिया। वो कौन से पाप थे ??
जब भरी सभा में “द्रोपदी” का चीरहरण हो रहा था। तब यह दोनों भी वहां उपस्थित थे। बड़े होने के नाते ये दुशासन को रोक भी सकते थे। किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया। उनके इस एक पाप से बाकी सभी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई। और “कर्ण” वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था। कोई उसके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं गया। उसके मृत्यु मे आपने क्यों सहयोग किया। उसकी क्या गलती थी ??
हे प्रिये! तुम सत्य कह रही हो। वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी किसी को ना नहीं कहा। किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था। तो उसने कर्ण से पानी मांगा कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था।
किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया। इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ “पुण्य” नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया। हे रुक्मणी! अक्सर ऐसा होता है। जब मनुष्य के आसपास कुछ गलत हो रहा होता है और वे कुछ नहीं करते।
वे सोचते हैं की इस “पाप” के भागी हम नहीं हैं। अगर वे मदद करने की स्थिति में नहीं हैं तो सत्य बात बोल तो सकते हैं कि वह कुछ नहीं कर सकते। वह मदद करने की स्थिति में नहीं हैं। परंतु वे ऐसा भी नहीं करते। ऐसा ना करने से वे भी उस “पाप” के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं। जितना “पाप” करने वाला होता है।