ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के रास्ते में 10 लाख पेड़
देहरादून. जिस ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के श्रेय को लेकर विधानसभा चुनाव में चर्चा रही, अब एक भारी भरकम मुआवज़े के केस को लेकर सुर्खियों में है. यह केस बागवानी करने वाले एक पूर्व कृषि अफसर और रेलवे के बीच चल रहा है. अगर रेलवे के हक में यह केस गया तो रेलवे को करीब 58 करोड़ रुपये का मुआवज़ा देना पड़ सकता है, लेकिन कहीं यह केस बागवानी करने वाले के हक में चला गया, तो रेलवे को 400 करोड़ रुपये तक का मुआवज़ा अदा करना होगा. ऐसा हुआ तो देश में संभवत: व्यक्तिगत मुआवज़े की यह सबसे बड़ी रकम हो सकती है. फिलहाल मामला हाई कोर्ट के बाद ट्रिब्यूनल में पेंडिंग है.
126 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन से जुड़े इस मामले के मुताबिक 2013 में जब यहां सर्वे का काम हुआ, तो तय हुआ कि मलेथा में स्टेशन बनेगा. इसकी सीमा में एक पूर्व ज़िला कृषि अफसर अनिल जोशी द्वारा किराये पर ली गई ज़मीन भी आई. इस ज़मीन पर जोशी ने फलों के लाखों पौधे लगाए थे, जो अब पेड़ बन चुके हैं. 2017 में जब रेलवे ने इन पेड़ों के मुआवज़े का आकलन किया, तो गणना में शहतूत के 7,14,240 पेड़ मिले और संतरे, आम सहित अन्य फलों के 2,63,980 पेड़ पाए गए. अब इन पेड़ों के मुआवज़े को लेकर बात अटकी हुई है.
नियम यह है कि एक मदर प्लांट पर 2196 रुपये मुआवज़ा संपत्ति के हकदार को दिया जाए. इस हिसाब से करीब 10 लाख पेड़ों का मुआवज़ा 400 करोड़ रुपये बनता है. इस रकम से रेलवे के पसीने छूटे तो उसने जोशी को बुलाकर कहा कि शहतूत को फलदार पेड़ नहीं माना जा सकता और ये बड़ी संख्या में भी हैं इसलिए ऐसे पेड़ों के लिए 4.50 रुपये प्रति पेड़ के हिसाब से भुगतान होगा. इसके बाद मामला हाई कोर्ट में चला गया.
हाई कोर्ट ने इस मामले को सुनकर उद्यानिकी विभाग से पुष्टि करवाई कि रेलवे का तर्क कितना सही है, तो विभाग ने शहतूत को संतरे की तरह ही फलदार पेड़ करार दिया. इसके बाद यह मामला मुआवज़े को लेकर बनाए गए ट्रिब्यूनल के पास बढ़ा दिया गया, लेकिन चूंकि ट्रिब्यूनल में अभी जज नियुक्त नहीं हुए हैं, तो इसकी सुनवाई पेंडिंग है.