उत्तर बिहार में मैथिली बत्तख के विकास और अंडे की श्रमता बढ़ाने पर काम !!

पटना. उत्तर बिहार में पाई जाने वाली मैथिली बत्तख को पसंद करने वालों के लिए एक अच्छी खबर सामने आ रही है, बिहार के रहने वालो को ये बात जानकर खुशी होगी कि उनके यहां पाये जाने वाले मैथिली बत्तख का नाम नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज करनाल में दर्ज कर लिया गया है. छह साल तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्वी अनुसंधान परिसर के वैज्ञानिकों की टीम ने मैथिली बत्तख पर रिसर्च की है. जिसके बाद मैथिली बत्तख का नाम दर्ज करवाया गया है.
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फिलहाल आईसीएआर मैथिली बत्तख को विलुप्त होने से बचाने में लगा हुआ है. दरअसल, में मैथिली बत्तख कम अंडे देते हैं, जिसके चलते किसान दूसरे बत्तखों से पाल खिला देते हैं. इसी वजह से मैथिली बत्तखों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. इसी के चलते आईसीएआर किसानों को मैथिली बत्तख के बारे में बताकर उन्हें जागरूक कर रहे हैं. यही नहीं आईसीएआर के वैज्ञानिक मैथिली बत्तख के विकास और अंडे की श्रमता बढ़ाने पर काम कर रही है, ताकि इन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके. बिहार की पहचान बन चूके मैथिली बत्तख को अब देशभर में काफी पसंद किया जा रहा हैं.
मैथिली बत्तख पर रिसर्च करने वाली डॉ. रीना कमल ने बताया कि पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज और मोतिहारी के इलाकों में मैथिली का देसी नामकरण किया गया है. इसके अलावा डॉ. रीना ने बताया कि मैथिली बत्तख अपने आकर्षक रंग, हलके वजन और यहां के वातावरण में जिंदा रहे सकते हैं. ऊपर से इनके इलाज में भी कम खर्च आता है. मैथिली बत्तखों को पालने के लिए भी ज्यादा जमीन की जरुरत नही पड़ती है. इसका मीट औषधीय गुणों से भरपूर है. आकड़ों के मुताबिक राज्य में 50-60 हजार बत्तख मौजुद हैं.