इंटरनेट की कछुआ स्पीड से दम तोड़ रहा है डिजिटल इंडिया
डॉव सत्यवान सौरभ
भारत सरकार ने देश को डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत , मायगॉव, गवर्नमेंट ई-मार्केट, डिजीलॉकर, भारत नेट, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और स्मार्ट सिटीज को शामिल करके भारत को तकनीकी क्षमता और परिवर्तन की ओर अग्रसर किया गया है। डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा में उठाये गए ये सभी कदम आर्थिक विकास की एक नई लहर को ट्रिगर करने, अधिक निवेश को आकर्षित करने और कई क्षेत्रों में नए रोजगार पैदा करने में मदद करने के लिए बड़े जोर-शोर से उठाये गए है। हालाँकि, इनके साथ हमारे सामने साइबर सुरक्षा की एक बड़ी चुनौती भी है। हाल ही में भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 (।) का प्रयोग करते हुए हमारे पडोसी देश चीन द्वारा निर्मित और संचालित 59 एप्प्स, जिनमें टिकटॉक, शेयर इट, कैम स्कैनर इत्यादि शामिल हैं, को प्रतिबंधित कर दिया था। इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डेटा सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताओं को इस प्रतिबंध का सबसे बड़ा आधार बताया है। भारत के द्वारा चीनी उपकरणों पर लगाए गए प्रतिबंध से निश्चित ही वैश्विक बाजार में चीनी कंपनियों की साख गिरी और प्रभावित हुई है। वर्तमान दौर भारत के लिये यह एक अवसर के रूप में सामने आया है। इसलिए समय की नब्ज पकड़ते हुए भारत को दीर्घकालिक रणनीति पर कार्य करते हुए डिजिटलीकरण की दिशा में आगे बढऩा होगा, तभी हम चीन को पछाड़ पाएंगे और उस पर हमारी निर्भरता हमेशा के लिए खत्म हो सकेगी। वर्ष 2015 में भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया नाम से एक विशाल अभियान देश भर में शुरू किया था, ऐसा देश के विभिन्न हिस्सों में सरकारी सेवाओं को सुलभ और आम आदमी की पहुँच में बनाने के लिए किया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य देश के लोगों के लिए प्रौद्योगिकी एवं तकनीक की पहुंच में सुधार करना था।
उसके बाद से हमारी सरकार ने इंटरनेट कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने पर काम किया और यह सुनिश्चित किया कि इंटरनेट देश के दूरस्थ और ग्रामीण हिस्सों तक आसानी से पहुँचा जा सके। इसमें एक पहल में देश के ग्रामीण भागों को उच्च गति के इंटरनेट से जोडऩे की थी। यह परियोजना भारत सरकार की एक संस्था द्वारा संचालित होती है जिसे भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) कहा जाता है। हम डिजिटल राह पर निकले ही है कि डिजिटल दुनिया के नए खतरे सामने आकर खड़े हो गए है, नई तकनीकें जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग भी साइबर सुरक्षा के लिए नई चुनौतियाँ लेकर आई हैं। इंटरनेट प्रौद्योगिकियां हैकर्स के लिए ठगी का धंधा बन गई है, भारत की कम साक्षर जनता के पास साइबर-सुरक्षा की मानसिकता नहीं है। लोग अभी भी साइबर जोखिमों को नहीं समझते हैं और उनको अधिकांश साइबर हमलों की सूचना नहीं है, हमारे देश में साइबर सुरक्षा पेशेवरों की कमी, विशेषकर ग्रामीण स्तर पर,साइबर बुलियां, चरमपंथी और आतंकवादी इस बात का फायदा उठाकर हमारी हर व्यवस्था के भीतर तबाही मचा रहे हैं।
अगर हम भारत में इंटरनेट पहुँच की बात करे तो हमारे यहाँ भारतनेट परियोजना अधर में लटकी है जो 2.5 लाख गांवों को इंटरनेट कनेक्शन देने की बात करती है। हमारे देश में अन्य विकसित राष्ट्रों की तुलना में वाई-फाई हॉटस्पॉट और धीमी गति के रोल-आउट की वजह से अधिकांश लघु और मध्यम स्तर के उद्योग आधुनिक तकनीक के अनुकूल होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहीं नहीं हमारे यहां के स्मार्टफोन में सुचारू इंटरनेट के उपयोग की सीमित क्षमताएं हैं, और Óस्मार्टफोन के आउटरीच सीमित हैं। डिजिटल तकनीक में शिक्षा का अभाव और ट्रेन कर्मियों के लिए सीमित सुविधाएं डिजिटल अपराध के बढ़ते खतरे को न्योता दे रहें है और इनकी जांच और निगरानी के लिए भारत साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की आवश्यकता से जूझ रहा है। मगर ऐसा भी नहीं है कि भारत सरकार इन समस्यायों को दूर करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रही है, कुछ हद तक हमने कोशिशें की है. राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन 2020 भारत के प्रत्येक घर में कम-से-कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाने के उद्देश्य से की गई है।
राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति-2018 प्रत्येक नागरिक को 50 डइचे की गति से सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए प्रयासरत है। सभी ग्राम पंचायतों को वर्ष 2020 के अंत तक 1 गीगा बाइट प्रति सेकंड तथा वर्ष 2022 तक 10 गीगा बाइट प्रति सेकंडकी कनेक्टिविटी की दिशा में कदम बढ़ाये जा रहें है। इन सबके साथ-साथ भारत सूचना साझा करने और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में सर्वोत्तम कार्य प्रणाली अपनाने के लिये अमेरिका, ब्रिटेन और इजराइल जैसे देशों के साथ समन्वय कर रहा है। साइबर सुरक्षा की चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार ने भी व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया था। मगर अब हमें इस बदलते दौर में अब कुछ विशेष करने की जरूरत है ,सरकार को प्रतिबंधित किये गए चीनी उपकरणों के स्थान पर भारतीय उपकरणों के विकास में युवा उद्यमियों को प्रोत्साहन प्रदान करना होगा ताकि वो नए आईडिया लेकर नए इंडिया का निर्माण कर सके। देखा जाये तो किसी भी तकनीकी परियोजना के शीघ्र निर्माण के लिये सिंगल विंडो क्लीयरेंस, फंड की उपलब्धता तथा अनापत्ति प्रमाण पत्र की सुविधा होना अति आवश्यक है। हमारी सरकार को इस दिशा में तेजी से कार्य करना चाहिये। वर्तमान में चीनी उपकरणों पर प्रतिबंध भारतीय उद्यमियों के लिये बाजार में उत्पन्न हुई शून्यता को भरने के लिये एक अच्छा अवसर है। अगर हम आज नए प्रयास करें तो तकनीकी दक्ष भारतीय पेशेवरों के बल पर हिन्दुस्तान विश्व में डिजिटल नवाचार का मुख्या केंद्र बन सकता है।