आपराधिक कार्यवाहियों को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग कम से कम होना चाहिए, जाने पूरी खबर

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को कहा कि आपराधिक कार्यवाहियों को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग कम से कम और संयम के साथ किया जाना चाहिए। इसका इस्तेमाल दुर्लभतम मामलों में ही किया जाना चाहिए। न्यायाधीश बीआर गवई और एस रवींद्र भट्ट की पीठ ने यह टिप्पणी एक संपत्ति के विवाद में तीन व्यक्तियों के खिलाफ धोखाधड़ी और बेईमानी के एक मामले को रद्द करते हुए की। पीठ ने कहा, इस अदालत ने आगाह किया है कि, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग बहुत कम और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए और वह भी दुर्लभ से दुर्लभ मामलों में।
अदालत ने कुछ विशेष श्रेणी के मामलों को निर्दिष्ट किया है
जिसमें कार्यवाही को रद्द करने के लिए ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन श्रेणियों में इस शक्ति का उपयोग किया जा सकता है, उनमें से एक यह है कि कोई आपराधिक कार्यवाही प्रकट रूप से दुर्भावनापूर्ण रूप से आरोपी से प्रतिशोध लेने के लिए और निजी द्वेष के कारण उसे उकसाने की दृष्टि से की गई हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में आरोपी के खिलाफ शिकायत अपीलकर्ता को परेशान करने के मकसद से दर्ज कराई गई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 156 (3) के तहत आदेश पारित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की ओर से बनाए गए कानूनों पर विचार करने में पूरी तरह असफल रहे। सीआरपीसी की इस धारा के तहत शक्ति का प्रयोग मजिस्ट्रेट की ओर से पुलिस को केवल एक संज्ञेय अपराध के संबंध में जांच करने का निर्देश देने के लिए किया जा सकता है।
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पीठ ने कहा, किसी भी मामले में, जब शिकायत एक हलफनामे द्वारा समर्थित नहीं थी, तो मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156 के तहत आवेदन पर विचार नहीं करना चाहिए था। इसलिए, हमारा विचार है कि वर्तमान कार्यवाही को जारी रखना कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा।