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आधुनिक मानव का डीएनए अपने पूर्वजों के डीएनए से बहुत अलग नहीं

पृथ्वी पर जीवों के विकास बहुत ही व्यवस्थित तरीके से हुआ है. लंबे समय से वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास कर रहे हैं मानव दुनिया के अन्य जीवों के तुलना में खास क्यों और कैसे हैं. अब वैज्ञानिकों ने एक नया उपकरण तैयार किया है जिसने इस रहस्य को सुलझाने की दिशा में अहम कदम उठाने में मदद की है. इस उपकरण से वैज्ञानिक आधुनिक मानव और विलुप्त हो चुके हमारे पूर्वजों के डीएनए की सटीक तुलना की है. इस अध्ययन में पाया गया है कि आधुनिक मानव का केवल 7 प्रतिशत डीएनए ही दूसरे मानवों में नहीं है.

साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक आज के मानव के जीनोम का केवल 7 प्रतिशत हिस्सा ही ऐसा है जो किसी अन्य पूर्वज में नहीं हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैसिफोर्निया के कम्प्यूटेशनल बायोलॉजिस्ट और इस शोधपत्र के लेखक नाथन शेफर का कहना है कि यह बहुत ही कम प्रतिशत है. ऐसे ही नतीजे होते हैं जिनकी वजह से वैज्ञानिक इस सोच से दूर हो जाते हैं कि इंसान निएंडरथॉल से बहुत ज्यादा अलग हैं.

इस शोध में शोधकर्ताओं ने अब विलुप्त हो चुके निएंडरथॉल और डेनिसोवियन्स के जीवाश्मों में से डीएनए निकाले जो करीब 40 हजार से 50 हजार साल पहले रहा करते थे. इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने 279 आज के लोगों के डीएनए भी निकाले हैं. वैज्ञानिक पहले से ही यह जानते थे कि आधुनिक मानव निएंडरथॉल से कुछ डीएनए साजा करते हैं. लेकिन दुनिया में अलग अलग लोग उनसे अलग अलग जीनोम कि हिस्से साझा करते हैं.

इस नए शोध का एक लक्ष्य ऐसे जीन्स की पहचान करना था जो केवल आधुनिक मानव में ही पाई जाती हैं. इस शोध में शामिल नहीं रहे यूनिवर्सिटी ऑफ विसकोनिसिन के पुरातन मानवशास्त्री जॉन हॉक्स का कहना है कि यह एक कठिन सांख्यिकीय समस्या है और शोधकर्ताओं ने एक कीमती उपकरण विकसित किया है जो पुराने जीनोम में खोए हुए आंकड़ों को भी शामिल करता है.

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि हमारे जीन का छोटा सा अंश यानि केवल 1.5 प्रतिशत ऐसा है जो हमारी आज की प्रजाति में ही खास तौर पर पाया जाता है और वह सभी जीवित लोगों में है. इन डीएनए में ऐसे संकेत छिपे हैं जो सही मायनों में आधुनिक मानव को दूसरों से अलग करते हैं. इस अध्ययन के सहलेखक और सांता क्रूज की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के कम्प्यूटेशनल बायोलॉजिस्ट रिचर्ड ग्रीन का कहना है कि मस्तिष्क के कार्यों और न्यूरल विकास से संबंध जीन्स से समृद्ध वाले जीनोम के क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है.

साल 2010 में ग्रीन ने निएंडरथॉल के पहले जीनोम ड्राफ्ट बनाने में मदद की थी. इसके चार साल बाद जेनेटिकविद जोसुआ एकेय ने एक शोधपत्र में दर्शाया था आधुनिक मानव में निएंडरथॉल के कुछ डीएनए को साझा करता है. तब से वैज्ञानिक तकनीक बेहतर करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे जीवाश्म से जेनेटिक पदार्थ निकालकर उसका जेनिटक विश्लेषण किया जा सके.एकेय का कहना है कि बेहतर उपकरण से हमें विस्तृत प्रश्नों के उत्तर मिल सकेंगे.

लेकिन सेंट लुईस की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के एक जनसंख्या अनुवांशकीविद एलन टैम्पलेटन ने इस अध्ययन के शोधकर्ताओं की इस मान्यता पर सवाल उठाए हैं कि मानव जीनोम के बदलाव अनियमित रूप से बिखरा होगा. उन्होंने यह नहीं माना था कि जीनोम में बदलाव किसी खास जगहों पर समूह में भी हो सकते हैं. एकेय का कहना है कि यह पड़ताल इस बात को कमतर समझती है कि हम वास्तव में बहुत युवा प्रजाति हैं. ज्यादा पुराने समय नहीं हुआ है जब हम दूसरे मानव वंशजों के साथ रहते थे.

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