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आज देशभर में मोहर्रम मनाया जाएगा!नहीं निकाले जायेगे ताजिया

 

 

 ( गुलफाम अली )

यह मातम का महीना कहलाता है। इसमें ​शिया मुसलमान मातम मनाते हैं। आज देशभर में मोहर्रम मनाया जाएगा। इसे गम का महीना कहा जाता है। पैगम्बर-ए-इस्‍लाम हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की शहादत की याद में मुस्लिम समाज खासकर शिया समुदाय मातम मनाता है और जुलूस निकालता है। मोहर्रम माह के नौवें या दसवें दिन को रोजा रखा जाता है। मोहर्रम के जुलूस के साथ ताजिए दफन किए जाते हैं

हज़रत इमाम हुसैन तथा बादशाह यज़ीद की सेना के बीच कर्बला की जंग हुई थी। हज़रत इमाम हुसैन अपने परिवार और दोस्तों के साथ इसमें शहीद हो गए ​थे। इमाम हुसैन का मकबरा बगदाद से 120 किमी दूर उस स्थान पर ही बना है, जहां पर वह जंग हुई थी। इसके स्थान को बेहद ही श्रद्धा और सम्मान के साथ देखा जाता है। बताया जाता है ​कि हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए मोहर्रम के 10वें दिन स्वयं को कर्बला में कुर्बान कर दिया था। इस दिन को आशूरा के रूप में भी जाना जाता है। इसकी याद में ही हर वर्ष ताजिए निकाले जाते हैं और मातम मनाया जाता है। उन ताजियों को शहीदों के प्रतीक के रूप में दफनाया जाता है

  1. मुस्लिम समाज की महिलाओं और पुरुषों की आंखें आज के दिन नम होती हैं। मातम मनाते समय वे कहते हैं— ‘या हुसैन, हम न हुए।’ इसका अर्थ है कि हज़रत इमाम हुसैन हमें इस बात का दुख है कि कर्बला की जंग में हम आपके लिए कुर्बान होने को साथ नहीं थे।

कोरोना महामारी को देखते हुए इस बार मोहर्रम की ताजिया नहीं निकाली जाएगी। सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने के लिए तथा लोगों की सेहत और जीवन के जोखिम को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया गया है। ऐसा करने से कोरोना वायरस का लोगों में संक्रमण तथा फैलाव नहीं होगा। फातिहा और निशान चढ़ाने जैसे कार्यक्रम शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए करना है।

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