अली, बाहुबली और बजरंगबली के बीच लोनी की लड़ाई !!

किसान आंदोलन की तपिश बनाम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश में मुकाबला। भाजपा पिछले चुनाव की तरह धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिश में है, तो वोटों की फसल काटने के लिए रालोद का प्रयास किसान आंदोलन की तपिश को बनाए रखना है। मुकाबला भाजपा और रालोद गठबंधन के बीच ही नजर आ रहा है, लेकिन दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे बसपा इसे त्रिकोणीय बनाना चाह रही है। देश की राजधानी से सटे लोनी में इन दिनों भाजपाइयों की तरफ से उछाले गए एक नारे के तीन शब्द फिजा में गूंज रहे हैं- अली, बाहुबली और बजरंगबली।
परिसीमन में खेकड़ा सीट के खत्म होने से 2012 में अस्तित्व में आई लोनी विधानसभा सीट से भाजपा ने 2017 में जीते विधायक नंद किशोर गुर्जर को मैदान में उतारा है, तो चार बार जीते और तीन बार हारे मदन भैया रालोद के टिकट पर ताल ठोक रहे हैं। बसपा से हाजी आकिल, कांग्रेस से यामीन मलिक और आम आदमी पार्टी से सचिन शर्मा मैदान में हैं। सपा-रालोद के जिन उम्मीदवारों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बाहुबली बता रहे हैं, उनमें मदन भैया का भी नाम है।
यहां की फिजा का असर साहिबाबाद और बागपत तक – लोनी की चुनावी फिजा का असर एक तरफ इससे सटे देश के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र साहिबाबाद पर पड़ता है, जहां 11 राज्यों के वोटर रहते हैं तो दूसरी तरफ बागपत जिले की बागपत सीट है, जो कभी रालोद का सबसे मजबूत गढ़ हुआ करती थी। हालांकि पिछले चुनाव में यह भी भाजपा के रंग में रंग गई। साहिबाबाद में भाजपा ने मौजूदा विधायक सुनील शर्मा को उतारा है। उन्हें चुनौती दे रहे हैं 2012 में बसपा के टिकट पर जीते अमरपाल शर्मा, जो इस बार साइकिल पर सवार हैं। बागपत में भाजपा के विधायक योगेश धामा का मुकाबला रालोद के अहमद हमीद से है, जो पूर्व मंत्री कोकब हमीद के पुत्र हैं।
कमजोर पड़े मुद्दे – बड़े औद्योगिक क्षेत्र वाले लोनी विधानसभा क्षेत्र में प्रदूषण बड़ा मुद्दा है। यहां साल में 300 से ज्यादा दिन हवा जहरीली रहती है। खेकड़ा से आ रहे नाले के जहरीले पानी से बीमारियां फैल रही हैं। कॉलेज और अस्पतालों की कमी है। लोग इनकी चर्चा तो करते हैं, लेकिन यह भी स्वीकारते हैं कि मतदान के फैसले पर इनका खास असर नहीं होता।
चेयरपर्सन की बगावत – लोनी नगर पालिका की चेयरपर्सन रंजीता धामा भाजपा छोड़कर निर्दलीय मैदान में कूद पड़ी हैं। उनकी लोनी में अच्छी पकड़ मानी जाती है। पति मनोज धामा दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद हैं। वह भी पालिकाध्यक्ष रह चुके हैं।
अबकी समीकरण क्या गुल खिलाएंगे? – 2017 के चुनाव में सपा और रालोद अलग-अलग चुनाव लड़े थे। रालोद की मतों में हिस्सेदारी 15.59 फीसदी तो सपा की 15.50 फीसदी रही। दोनों को मिले मतों को अगर जोड़ दिया जाए तो 31.09 फीसदी की हिस्सेदारी ही रही। जबकि, भाजपा की अकेले मतों की हिस्सेदारी 41.44 फीसदी रही थी। अगर ट्रेंड वैसा ही रहा तो गठबंधन भाजपा के लिए चुनौती नहीं पेश कर पाएगा। फिलहाल बदले समीकरणों की वजह से यहां चुनावी मुकाबला जोरदार होने के आसार हैं।
दूर तलक जाएगी नतीजों की गूंज – हर दिन नए तीरों की टंकार। हर दिन नई हुंकार। पल-पल समीकरणों में बनती-बिगड़ती सरकार। कभी ये पलड़ा भारी, तो कभी वो…। ऐसा रोमांच देखा है कहीं! यूपी के सियासी समीकरणों में कब एक-एक मिलकर ग्यारह हो जाए, पता नहीं। यहां कब कोई जोड़ घटाने में बदल जाए, पता नहीं…। समीकरणों की ये अंक गणित निराली है। कौन समर्थक विरोध कर रहा है और कौन विरोधी समर्थन कर तीसरे को फायदा पहुंचा रहा है, यह गुणा-भाग यहीं देखने को मिलता है। यूपी की सियासत का अंदाज ही निराला है। मिजाज ही निराला है। विधानसभा चुनाव बेहद रोचक पड़ाव पर पहुंच चुका है। पर, ये रोमांच नतीजों पर ही जाकर नहीं ठहर जाएगा। यहां के नतीजे बहुत कुछ बदलाव लाएंगे। नए गुल खिलाएंगे। नतीजे कैसे नई इबारत लिखेंगे, नए समीकरण बनाएंगे,