अंतराष्ट्रीय

अमेरिका और नाटो से चाहते हैं दोस्ती, मदद के लिए आना चाहिए वापस

काबुल. अफगानिस्तान  पर तालिबान  के कब्जे के बाद दुनिया भर में अलग-अलग आशंकाएं जाहिर की जा रही हैं. अमेरिकी और अन्य देशों की सेनाएं भी 31 अगस्त को पूरी तरह से लौट जाएंगी. इसके बाद अफगानिस्तान पर पूरी तरह से तालिबान का कब्जा होगा. ऐसे में आशंका जाहिर की जा रही है कि क्षेत्र में हिंसा का दौर बढ़ सकता है. इसके साथ ही पाकिस्तान  सरीखे मुल्क भी अफगानी जमीन का इस्तेमाल भारत  के खिलाफ करेंगे. इस बीच तालिबान के दोहा कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद स्तानकजई ने दुनिया से आग्रह किया है कि वह अफगानिस्तान की मदद के लिए आमंत्रित हैं. इस्लामी अमीरात अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार के संभावित विदेश मंत्री स्तानकजई  ने भारत के संदर्भ में कहा कि वह आतंकी संगठनों को अफगानी जमीन से ऑपरेट नहीं करने देंगे. अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद वहां के संभावित विदेश मंत्री स्तानकजई ने  अफगानिस्तान से जुड़े मुद्दों पर तालिबान का पक्ष रखा…
इस्लामी अमीरात अफगानिस्तान की विदेश नीति हमारे सभी पड़ोसी देशों और पूरी दुनिया के साथ अच्छे संबंध रखने की है. अफ़ग़ानिस्तान में पिछले 20 सालों से अमेरिकी सेनाएं थीं. अब वे देश से हट रही हैं, इसलिए इसके बाद अमेरिका से और नाटो से भी मित्रतापूर्ण संबंध होंगे. इसलिए मुझे लगता है कि उन्हें वापस आना चाहिए और अफगानिस्तान को दुरुस्त करने की प्रक्रिया में हिस्सा लेना चाहिए. यही बात भारत के संदर्भ में भी है. हम सांस्कृतिक और आर्थिक और अन्य संबंधों की तरह मैत्रीपूर्ण संबंध चाहते हैं. ना सिर्फ भारत के साथ बल्कि ताजिकिस्तान, ईरान और पाकिस्तान सहित हमारे सभी पड़ोसी देशों के साथ हम अच्छे रिश्ते चाहते हैं.
मीडिया में जो सामने आता है वह अक्सर गलत होता है, हमारी तरफ से ऐसा कोई बयान या संकेत नहीं है. हम अपने सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं.
आशंका जताई जा रही है कि अफगानिस्तान लश्कर और जैश जैसे आतंकी समूहों के लिए पनाहगाह बन सकता है. यह आतंकी संगठन भारत के लिए खतरा है. उस पर आप क्या कहना चाहते हैं?
हमारे पूरे इतिहास में अफगानिस्तान से भारत सहित हमारे किसी भी पड़ोसी देश को कोई खतरा नहीं था और आगे भी ऐसा बिल्कुल नहीं होगा. इसमें कोई शक नहीं कि भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से राजनीतिक और भौगोलिक विवाद है. हमें उम्मीद है कि वे अपनी आंतरिक रस्साकशी में अफगानिस्तान का इस्तेमाल नहीं करेंगे. उनकी लंबी सीमा है, वे सीमा पर आपस में लड़ सकते हैं. उन्हें इसके लिए अफगानिस्तान का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और हम इसके लिए किसी भी देश को अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देंगे.
यह हमारा कर्तव्य है कि हम दुनिया के किसी भी देश के खिलाफ, अफगानी जमीन का इस्तेमाल ना होने दें.
यह मेरे शुरुआती दिनों की बात है. रूसियों के अफगानिस्तान आने से पहले मैंने वहां ट्रेनिंग की थी. मैंने IMA में शिक्षा ग्रहण की और वहां से ग्रेजुएशन किया.
मीडिया में मैंने देखा है कि दाइश  ने हमले की जिम्मेदारी ली थी.
ऐसा अफगान लोगों के दुश्मन कहते हैं. यह सच नहीं है और पूरी तरह से झूठ है. चूंकि दाइश ने इसकी जिम्मेदारी ली है, ऐसे में यह स्पष्ट है कि ब्लास्ट उन्होंने ही किया है.
मुझे लगता है कि उन्हें जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. अफगानिस्तान उनकी मातृभूमि और देश है इसलिए वे यहां शांति से रह सकते हैं और यहां उनको कोई नुकसान नहीं होगा. वे वैसे ही रह सकते हैं जैसे वे पहले रह रहे थे. हमें उम्मीद है पिछले 20 साल की सरकार के कार्यकाल में भारत गए अफगानी हिन्दू और सिख भी वापस आ जाएंगे.
हमें उम्मीद है कि मान्यता मिलेगी. हम इस्लामी अमीरात ऑफ अफगानिस्तान की सरकार बनाएंगे, ऐसे में हमारे पड़ोसियों और दुनिया के अन्य देशों को हमारे साथ अच्छे संबंध रखने की जरूरत है. जब नई सरकार की घोषणा होगी तो हम आशा करते हैं कि वे सभी देश जो इस क्षेत्र से संबंधित हैं वह हमारा समर्थन करेंगे.
अफगानिस्तान में भारत द्वारा किया गया विकास हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है, हम इसे ऐसे ही रखेंगे और हम आशा करते हैं कि भविष्य में सभी अधूरे कार्य भारत पूरे करेगा. हम भारत को परियोजनाओं को पूरा करने के लिए आमंत्रित करते हैं.
हां, अगर कोई आपके देश में आकर काम कर रहा है तो आपको उन्हें सुरक्षा मुहैया करानी होगी. मुझे नहीं लगता कि इस तरह के सवाल पूछने की कोई जरूरत है.

 

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