अमरोहा कांडः गांव में अब कोई नहीं रखता बेटी का नाम शबनम
बावनखेड़ी गांव के लोगों के जहन में आज भी 14/15 अप्रैल 2008 की काली रात का खौफ है। एक ही परिवार के सात सदस्यों की बेरहमी से कत्ल की घटना को दस साल गुजर चुके हैं। ये गांव शबनम के नाम से अब भी खौफ खाता है और नफरत करता है। बावनखेड़ी हत्याकांड के दस साल बाद भी गांववाले अपनी बेटियों का नाम शबनम रखने को तैयार नहीं है। गांव वाले ही नहीं, आसपास के गांवों के लोग भी जल्द से जल्द शबनम की फांसी का इंतजार कर रहे हैं।बावनखेड़ी के ग्राम प्रधान मोहम्मद नबी का कहना है कि वर्ष 2008 में बावनखेड़ी कांड के समय गांव में कई बेटियों का नाम शबनम था। अधिकांश बेटियों की शादी हो चुकी है। शबनम नाम की चार पांच बेटियां होंगी। घटना के बाद गांव में किसी बच्ची का नाम शबनम नहीं रखा गया है। शबनम नाम जुबां पर आते ही खौफनाक रात की वारदात ताजा हो जाती है।
शबनम का नाम लेते ही गांव वालों को खौफनाक रात की याद आ जाती है, जिसमें गांव के मास्टर शौकत के हंसते खेलते परिवार को मौत की नींद सुला दिया गया। एक के बाद एक परिवार के सात सदस्यों को कुल्हाड़ी से वार कर मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना को अंजाम किसी और नहीं बल्कि मास्टर शौकत की शिक्षामित्र बेटी शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर दिया था। हसनपुर कस्बे से सटे छोटे से गांव बावनखेड़ी की शिक्षामित्र शबनम ने 14/15 अप्रैल 2008 की रात को प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता मास्टर शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस और राशिद, भाभी अंजुम, भतीजे अर्श और फुफेरी बहन राबिया का कुल्हाड़ी से वार कर कत्ल कर दिया था।
‘फांसी में कतई देरी न हो‘
गांव के पूर्व प्रधान फुरकान का कहना है कि इस दिल दहलाने वाली घटना को दस साल से अधिक समय हो गए। आज भी लोग इस घटना को नहीं भूल पाए हैं। अब इसे नफरत कहिये या खौफ गांव के लोग अपनी बेटी का नाम शबनम नहीं रखना चाहते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि शबनम की फांसी में अब कतई देरी नहीं होनी चाहिए यदि फांसी से भी बड़ी कोई सजा हो तो वह शबनम को मिलनी चाहिए। शबनम के ही घर के सामने रहने वाले इंतजार अली कहते हैं, उस घटना के बाद बावनखेड़ी के किसी भी घर में बेटी का नाम शबनम नहीं रखा है। उनका कहना है कि वह खौफनाक मंजर आज भी सामने आ जाता है। घर में सात लोगों की कब्र आज भी उस घटना की गवाही देती है।