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अब 12 फीसदी भी Interest मिला, जाने पूरी खबर?

नई दिल्ली। अब 12 फीसदी भी Interest मिला, जाने पूरी खबर? होली की तैयारियों में जुटे कर्मचारियों को सरकार की ओर से तोहफे की आस थी, लेकिन इसके बजाय उन्हें तगड़ा झटका लगा है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) की दो दिवसीय बैठक में ईपीएफ में जमा राशि पर मिलने वाली ब्याज दर घटाकर 8.1 फीसदी कर दिया है। ईपीएफओ के इतिहास की बात करें तो अब तक इसमें साल दर साल कई बदलाव देखने को मिले हैं। इस पर कभी निम्नतम तीन फीसदी, तो कभी उच्चतम 12 फीसदी ब्याज दिया गया।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की स्थापना साल 1952 में की गई थी।

आपको बता दें कि ईपीएफओ भारत की एक राज्य प्रोत्साहित अनिवार्य अंशदायी पेंशन और बीमा योजना प्रदान करने वाला शासकीय संगठन है। सदस्यों और वित्तीय लेनदेन की मात्रा के हिसाब से देखें तो यह विश्व का सबसे बड़ा सगठन है। इसकी पावरफुल बॉडी सीबीटी ब्याज दरों पर फैसला लेती है। केंद्रीय श्रम मंत्री इसके प्रमुख होते हैं। केंद्र सरकार का लेबर सेक्रेटरी इसका वाइस-चेयरमैन होता है। इसमें केंद्र सरकार के 5 और राज्य सरकारों के 15 प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इसमें कर्मचारियों के 10 और नियोक्ताओं के 10-10 प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।

अब तक ईपीएफ Interest  ब्याज दर 8.5 फीसदी निर्धारित थी,

जिसे घटाकर 8.1 फीसदी Interest कर दिया गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां दर बीते चार दशकों से ज्यादा समय अवधि में सबसे कम है। इससे पहले 1977-78 में यह आठ फीसदी पर थी। हालांकि, अगर ईपीएफओ की शुरुआत से देखें तो पीएफ में जमा राशि पर मिलने वाली ब्याज दर 1952-53 में सबसे कम तीन फीसदी तय की गई थी, जबकि 1990 से 2001 तक यह सबसे उच्च स्तर 12 फीसदी पर रही थी। हम आपको बता रहे हैं संगठन की शुरुआत से लेकर अब तक किस वित्त वर्ष में सरकार ने कर्मचारियों को पीएफ पर किस दर से ब्याज दिया।

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कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की जब शुरुआत हुई तो उस समय यानी वित्त वर्ष 1952-53 में पीएफ पर मिलने वाली ब्याज दर को तीन फीसदी तय किया गया। इसके बाद 1954-55 तक इसी दर से ब्याज मिलता रहा। फिर 1955-56 में इसे बदला गया और 1962-63 तक यह 3.50 फीसदी से 3.75 फीसदी के दायरे में रही। 1963-64 में इसे बढ़ाकर चार फीसदी किया गया और 1966-67 तक यह चार से 4.75 फीसदी तक के दायरे में रही। वित्त वर्ष 1967-68 से 1971-72 तक ये पांच फीसदी से 5.80 फीसदी तक रही। इसके बाद 1972-73 में इसे छह फीसदी और 1975-76 में इसे बढ़ाकर सात फीसदी कर दिया गया।

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8.1 फीसदी की ब्याज दर बीते चार दशक में सबसे कम है। दरसअल, वित्त वर्ष 1977-78 में पीएम खाते में आने वाली ब्याज दर को बढ़ाकर आठ फीसदी किया गया था। 1982-83 तक यह आठ के दायरे में ही रही थी। 1982-83 में इसे एक बार फिर बढ़ाते हुए 9.15 फीसदी तय किया गया और यह 1985 तक 9.90 पर रही। समय आगे बढ़ने के साथ सरकार ने कर्मचारियों को राहत देते हुए इसमें लगातार इजाफा किया। वित्त वर्ष 1985-86 में इसे पहली बार बढ़ाकर दोहरे अंकों में कर दिया गया। उस समय पीएफ इंटरेस्ट रेट 10.15 फीसदी तय किया गया था।

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पीएफ ब्याज दरों में बढ़ोतरी का यह सिलसिला यहीं नही थमा और 1986-87 में इसे 11 फीसदी कर दिया गया, जो 1989 तक चला। इसके बाद मौका आया सबसे उच्च ब्याज दर का। जी हां, कर्मचारियों को तोहफा देते हुए सरकार ने 1989-90 में ब्याज दरों को 12 फीसदी तक बढ़ा दिया। यह उच्च दर 12 सालों तक निर्धारित रही यानी 2000-01 तक इसे यथावत रखा गया। लेकिन 2001-02 में इसमें बड़ा बदलाव किया गया और ब्याज दर घटाकर 9.50 कर दी गई। फिर पीएफ इंटरेस्ट रेट में कटौती का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक जारी है। हालांकि, बीच-बीच में थोड़ी राहत जरूर दी जाती रही।

वित्त वर्ष 2005-06 में Interest दर को फिर से घटाया गया और यह आठ के दायरे में आ गई।

2009-10 तक यह 8.50 पर स्थिर रही। इसके बाद 2010-11 में इसमें एक बार फिर उछाल देखने को मिला और यह 9.50 कर दी गई। लेकिन ये दर एक साल तक ही निर्धारित रही और 2011-12 में इसे कम करते हुए 8.25 कर दिया गया। तब से लेकर अब तक यह ब्याज दर आठ के दायरे में ही घूम रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इसे एक फिर 2015-16 में बढ़ाकर 8.80 किया गया था। अब फिर से ये 40 साल पुराने स्तर पर पहुंच गई है।

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