अंग्रेज अफसरों के नाम से आजादी अब तक नहीं मिली
गोरखपुर: भारत आज अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. जांबाज क्रांतिकारियों और रणबांकुरों ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेकर भारत को स्वतंत्र तो करा लिया लेकिन आज भी देश के कई शहरों और कस्बों में ऐसी सड़कें, मुहल्ले, भवन इत्यादि मौजूद हैं जो ब्रिटिशकाल की याद दिलाते हैं. क्या आपको इस बात से परेशानी नहीं होती कि ब्रिटिश हुकूमत में जिन अंग्रेजी अफसरों ने हमारे पूर्वजों पर बेइंतहां जुल्म जुल्म ढाए उनके नाम पर आज भी कस्बों, मुहल्लों और भवनों के नाम क्यों मौजूद हैं.
इन कस्बों, मुहल्लों और भवनों के नाम भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने वाले क्रांतिकारियों के नाम पर क्यों नहीं रखे जा सकते. वैसे तो भारत में ऐसे बहुतेरे कस्बे, मुहल्ले और भवन मौजूद हैं जो अंग्रेजी अफसरों के नाम से जाने जाते हैं. लेकिन हम 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गोरखपुर और आसपास के जिलों में स्थित ऐसे कस्बों, सड़कों और मुहल्लों का जिक्र करेंगे. शासन का ध्यान आकर्षित कराएंगे कि हमारे महापुरुषों के नाम पर इन्हें क्यों नहीं किया जा सकता…
क्या आप जानते हैं कि गोरखपुर जिले का पीपीगंज कस्बा आज भी अंग्रेज अफसर विलियम क्लिस्टन पेपे के नाम से जाना जाता है. विलियम क्लिस्टन पेपे बर्डपुर इस्टेट का मैनेजर था. उन दिनों यह इलाका बर्डपुर इस्टेट के दायरे में ही आता था, इसलिए कस्बे का नाम पेपेगंज हो गया. बाद में स्थानीय लोग इसे पीपीगंज कहने लगे. तो आप जान लीजिए कि जिसे पीपीगंज कहते हैं वह दरअसल विलियम क्लिस्टन पेपे के नाम से जाना जाता है.
इसी तरह महाराजगंज जिले में पड़ता है बृजमनगंज कस्बा. अंग्रेज अफसर जॉन हॉल बृजमैन ने ही बृजमनगंज की नींव रखी थी, जिसकी वजह से यह कस्बा उसके नाम पर जाने जाने लगा. यही नहीं उसकी बेटी लैरा थी जिसके नाम पर उसने लैरा स्टेट की स्थापना की जो बाद में चलकर लेहरा हो गया. हालांकि इतिहास में कुछ जगहों पर लेहरा का नाम अंग्रेज अफसर कैप्टन लेहर के नाम से पड़ने की बात कही जाती है.
गोरखपुर शहर का मुख्य बाजार है बेतियाहाता. यहां एक ऐतिहासिक इमारत खड़ी है जिसे रीड साहब का धर्मशाला कहते हैं. दरअसल, इस इमारत की पहचान अंग्रेज अफसर ईए रीड के नाम से है. रीड ने 1839 में इस दुर्ग सरीखी इमारत को धर्मशाला के रूप में स्थापित किया था. इस वजह से इसे रीड साहब का धर्मशाला कहा जाने लगा. तब से लेकर आज तक यह इमारत उसी नाम से जानी जाती है.
गोरखपुर जिले में ही पड़ता है कैंपियरगंज कस्बा. इसका नाम सुनकर ही पता चलता है कि बहुत अंग्रेजीदां है. इस कस्बे में जो रेलवे स्टेशन था उसके स्टेशन मास्टर थे विलियम कैंपियर हार्गलस. बस उन्हीं के नाम पर कस्बे का नाम भी कैंपियरगंज पड़ गया. विलियम कैंपियर हार्गलस की मौत को डेढ़ सौ साल हो गए लेकिन भारत की स्वतंत्रता के 75वें साल में भी उनका नाम एक कस्बे रूप में जिंदा है.
गोरखपुर में एक मुहल्ला है बर्ड घाट. ब्रिटिशकाल में जॉइंट मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात रहे अंग्रेज अफसर रॉबर्ट मर्टिंस बर्ड के नाम पर बसा है. गोरखपुर के लोग आजादी के 75 साल बाद भी मुहल्ले को इसी नाम से जानने को मजबूर हैं. बाबू बंधु सिंह और मोहम्मद हसन जैसे आजादी के दीवानों ने डेढ़ सौ साल पहले इस अंग्रेज अफसर की कोठी फूंक दी थी और यहां से भागने के लिए मजबूर कर दिया था. लेकिन उस अफसर के नाम पर बर्डघाट मुहल्ला आज भी कायम है.
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