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शास्त्री जी की मौत आज भी है क्यों रहस्य?

लाल बहादुर शास्त्री की मौत भारत से दूर ताशकंद में 11 जनवरी 1966 को हुई थी. उनकी मौत के रहस्य को आज भी पूरी तरह से सुलझाया नहीं जा सका है. कुछ सवाल उनकी मौत को हमेशा के रहस्यमय बना गए थे. ऐसा नहीं है कि शास्त्री जी की मौत के बारे में भारत सरकार से कभी कुछ जानने का प्रयास नहीं किया गया. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी कोई भी सरकार खुल कर इसके बारे में कुछ सार्वजनिक नहीं कर सकी.

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु पर सबसे ज्यादा रहस्य उन हालातों ने पैदा किया जिनमें वह हई. उस समय भारतऔर पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध समाप्त हुआ ही था. शास्त्री ताशकंद में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद की हालात पर समझौता करने के लिए पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान से शांति समझौते के ही लिए ताशकंद गए हुए थे. लेकिन इस समझौते के लिए हुई मुलाकात के बाद कुछ ही घंटों के अंदर उनकी अचानक मौत हो गई. इससे पहले उनकी सेहत में किसी तरह की कोई खराबी नहीं थी.
लाल बहादुर शास्त्री की मौत का कारण हृदयाघात बताया गया था. जबकि ऐसा नहीं था कि उनका दिल पहले से ही किसी तरह से कमजोर था. फिर हालात बहुत ही संदेहास्पद थे. जब उनका पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो कई प्रत्यक्षदर्शियों ने उनके चेहरे और शरीर पर अप्राकृतिक नीले और सफेद धब्बे देखे, उनके पेट और गर्दन के पीछे कटने के निशान भी देखे गए थे. लेकिन इससे भी ताज्जुब की बात यह है कि राजनारायण जांच समिति किसी तरह के वैध नतीजे पर नहीं पहुंची और उसकी विस्तृत रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं हो सकी. संसदीय लाइब्रेरी में भी उनकी मृत्यु या उसकी जांच समित का कोई रिकॉर्ड नहीं हैं. जिससे इसका रहस्य और गहरा होता गया.

हैरानी की बात है कि लाल बहादुर शास्त्रीकी संदेहास्पद स्थितियों में मौत के बाद भी उनका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया. जबकि उनके पार्थिव शरीर पर असामान्य निशान या धब्बे देखे गए थे. इसके अलावा पोस्टमार्टम के लिए केवल इतनी ही दलील काफी होनी चाहिए थी, कि उनकी मौत देश से बाहर हुई थी. शास्त्री जी के परिवारजनों का दावा था कि उनके शरीर पर जो नीले निशान थे, वे जहर की वजह थे. इसके अलावा भी कई और भी सवाल हैं जो इस मामले को बहुत ही संदेहास्पद बना देते हैं. पोस्टमार्टम नहीं हुआ था तो शास्त्री की शरीर पर कटने के निशान क्यों थे. फिर भी 2009 में भारत सरकार ने माना था कि शास्त्री की मौत के बाद उनके डॉक्टर और रूस डाक्टरों ने जांच की थी. .
दो खास गवाहों की असामान्य मौत ने भी लाल बहादुर शास्त्री की मौत को रहस्मयी बनाने में योगदान दिया. उनके नौकर रामनाथ और उनके निजी डॉक्टर डॉ आरएन चुग दोनों ही ताशकंद में उनके साथ गए थे. दोनों को 1977 में संसदीय निकाय के सामने पेश होना था, लेकिन उससे पहले ही दोनों की मौत हो गई थी. डॉ चुग और उनका परिवार इस समिति से मिलने जा रहा था कि ट्रक से दुर्घटना हो गई जिसमें डॉ चुग, उनकी पत्नी और उनके दो बेटों की मौत हो गई. इसके अलावा रामनाथ के बारे में भी कहा जा रहा था कि शास्त्री जी की मौत के बारे में कुछ खुलासाकर सकते हैं. लेकिन उनकी भी दुर्घटना में पैर चला गया और याद्दाश्त जाती रही.

ग्रेगरी डगलस के साथ हुए एक इंटरव्यू में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एजेंट रॉबर्ट क्रॉले ने इस बात की पुष्टि की थी कि लाल बहादुर शास्त्री और यहां तक होमी जहांगीर भाभा की हवाई दुर्घटना में हुई मौत के पीछे भी सीआईए का ही हाथ था. उस समय अमेरिका भारत को वैश्विक पटल पर उभरने नहीं देना चाहता था. इसके साथ ही वह भारत और रूस की परमाणु शक्ति केरूप में वर्चस्व बढ़ने नहीं देना चाहता था.

दिलचस्प बात यह है कि तमाम कोशिशों के बाद भी भारत सरकार से इस मामले की जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जा सकी है. एक बार “सीआईएस आई ऑन साउथ एशिया” के लेखक अनुज धर ने शास्त्री जी की आरटीआई के जरिए भारत सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय से लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बारे में जानकारी मांगी थी. उस समय सरकार ने कहा था कि इस मामले में एक अहम दस्तावेज जरूर है, लेकिन इसे डीक्लासीफाइड करने से विदेश संबंध खराब हो सकते हैं. इस तरह की जानकारी मांगने का यह साल 2018 में भी फिर प्रयास हुए थे, लेकिन कुछ खास खुल कर सामने नहीं आया था.

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