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यूपी में 1.16 लाख लोगों पर 1 सरकारी एम्‍बुलेंस, ये है बाकी स्‍टेट का हाल

लखनऊ. दो दिन पहले छत्तीसगढ़ के टिकरापारा में मरीज को ले जा रही एम्बुलेंस रास्ते में खराब हो गई। मरीज को एक घंटे के बाद दूसरी एम्बुलेंस मिली। उसे सांस लेने में तकलीफ होती रही, लेकिन एम्बुलेंस में ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं था। दरअसल, यहां 1100 एम्बुलेंस में से एक तिहाई खटारा हैं। कुछ ऐसा ही हाल यूपी में भी है। यहां अखिलेश यादव भले जितने दावे कर लें, लेकिन यहां के हेल्‍थ विभाग की स्थिति काफी खराब है। यूपी ही नहीं, देश के अन्‍य राज्‍यों में भी स्‍वास्‍थ्‍य विभाग का हाल बेहाल है। यूपी: 1.16 लाख लोगों पर है 1 एम्‍बुलेंस…
– यूपी में सरकारी और निजी मिलाकर 5195 एम्‍बुलेंस हैं।
– सरकारी नियम कहता है कि 80 हजार लोगों पर 1 एम्‍बुलेंस होनी चाहिए, जबकि यूपी में 1.16 लाख पर 1 सरकारी एम्‍बुलेंस है।
रोड एक्सीडेंट में 49% जख्मी ही एम्बुलेंस से पहुंच पाते हैं हॉस्पिटल, सिर्फ 5 लाख रुपए में फिर भी कमी…
– एम्बुलेंस को लेकर लगातार देशभर से खबरें आ रही हैं। कहीं मरीजों को ठेले पर अस्पताल पहुंचाया जा रहा है तो कहीं ऑटो से। जब भास्‍कर ने देश में एम्बुलेंस की स्थिति को लेकर पड़ताल की तो पता चला कि देश में एक लाख की आबादी पर केवल एक एम्बुलेंस है, जबकि सरकार कहती है कि उसकी कोशिश है कि 60 हजार की आबादी पर एक एम्बुलेंस उपलब्ध हो।
– दूसरी तरफ वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार, 10 मिनट में एम्बुलेंस मरीज तक पहुंच जानी चाहिए, लेकिन हमारे यहां अधिकांश मामलों में तो 30 मिनट तक लग जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, देश में किसी गंभीर रोड एक्सीडेंट के हो जाने पर केवल 11 से 49 परसेंट मरीज ही एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंच पाते हैं।
राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही है 34 हजार एम्बुलेंस
– पूरे देश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य सरकारों द्वारा लगभग 34 हजार एम्बुलेंस चलाई जा रही हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि प्रति एक लाख की आबादी में मात्र एक बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) एम्बुलेंस उपलब्ध है।
– इसी तरह हर एक लाख की आबादी में एक एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) एम्बुलेंस ही मौजूद है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में निदेशक कैप्टन कपिल चौधरी कहती हैं कि एम्बुलेंस उपलब्ध कराने के लिए राज्यों को आगे आने की जरूरत है।
– हम मांग के आधार पर स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्यों को पैसा उपलब्ध करा सकते हैं। सेव लाइफ फाउंडेशन के ऑपरेशन प्रमुख साजी चेरियन का कहना है कि भारत में मौजूदा ज्यादातर एम्बुलेंस सेवाओं में इस्तेमाल होने वाले वाहनों में स्वास्थ्यकर्मी आपातकालीन सेवाओं के लिए ट्रेंड नहीं होते। दुर्घटनाओं के बाद होने वाली मौतों की एक बड़ी वजह यह भी है।
सिर्फ 5 लाख रुपए में एम्बुलेंस, फिर भी कमी
– सामान्य मारुति वैन से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को लाने-ले जाने में इस्तेमाल होने वाली एम्बुलेंस की कीमत 5 लाख तक होती है। बावजूद इसके अस्पताल एम्बुलेंस खरीदने से बचते हैं।
– बेसिक लाइफ सपोर्ट वाली एक एम्बुलेंस की कीमत 10 लाख होती है। एडवांस लाइफ सपोर्ट सुविधा श्रेणी की कीमत 15 लाख रु. होती है। देश में महंगी एम्बुलेंस 70 लाख रु. तक की हैं।
ये सुविधाएं होना चाहिए
– ऑटोमेटिक स्ट्रेचर, जीवन रक्षक दवाएं, ब्लड प्रेशर इक्विपमेंट, स्टेथेस्कोप, दो ऑक्सीजन सिलेंडर, फर्स्ट एड बॉक्स जैसे बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम।
– 30 मिनट अधिकांश मामलों में मरीजों तक एम्बुलेंस को पहुंचने में लगते हैं। जबकि यह समय अधिकतम 10 मिनट होना चाहिए।
– 70 हजार ऐसे लोगों की जान हर साल एम्बुलेंस उपलब्ध कर बचाई जा सकती है जो राजमार्गों पर दुर्घटना के शिकार होते हैं।
कमी दूर नहीं हुई जबकि बाइक, बोट भी बनीं एम्बुलेंस
-तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने सैकड़ों की तादाद में टू-व्हीलर एंबुलेंस सेवाएं शुरू कर दी हैं। यूपी में बाइक एम्बुलेंस का प्रस्ताव है।
-सूरत जिले में लोगों ने ऑटो-एंबुलेंस सेवा शुरू की है। इस एंबुलेंस से मरीजों को आपात स्थिति में गांवों से 30 किमी दूर अस्पताल तक ले जाया जाता है।
-असम सरकार ने 2009 में मजूली जिले में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए बोट एंबुलेंस का इस्तेमाल शुरू किया। केरल और महाराष्ट्र में भी बोट सेवा शुरू की है।
-पिछले महीने डायरेक्टर जरनल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने देश के पहले एयर एंबुलेंस हेलिकॉप्टर को भारत में सेवा देने के लिए अनुमति दी है।

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