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भारत के इस बदले रुख के आदी नहीं है चीन ( चीन)

नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को लेकर चीन और भारत के बीच सीमा विवाद रहा है. चीन ने हाल ही में एक बार फिर से अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताया. हालांकि, भारत ने चीन के इस कदम को सिरे से खारिज कर दिया है. भारतीय क्षेत्र पर चीन के दावों के बीच केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने मोदी सरकार का रुख साफ किया है. रिजिजू ने कहा, “नरेंद्र मोदी सरकार की मजबूत बॉर्डर पॉलिसी ने चीन         ( चीन) को परेशान कर दिया है. इसलिए वह चिढ़कर ऐसे बयान दे रहा है.”

चीन ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताकर वहां की 30 जगहों के नाम बदल दिए हैं. चीन की सिविल अफेयर मिनिस्ट्री ने इसे लेकर बयान भी जारी किया.किरेन रिजिजू ने मंगलवार को चीन की इस हरकत पर प्रतिक्रिया दी. केंद्रीय मंत्री ने कहा, “चीन के निराधार दावों से जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी. भारत 1962 के समय वाला देश नहीं है. अब वह अपने क्षेत्र के हर इंच की रक्षा करेगा. हम कोई छोटे और कमज़ोर देश नहीं हैं, जिसे धमकाया जा सके.”

उन्होंने कहा, “अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है था और हमेशा रहेगा. अरुणाचल प्रदेश के लोग सभी मानकों और परिभाषाओं के अनुसार सर्वोच्च भारतीय देशभक्त हैं.”

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “अरुणाचल प्रदेश में सीमाई क्षेत्र में हो रहे भारतीय विकास से चीन घबरा गया है. कांग्रेस के शासन में बार्डर पर काम नहीं होता था. पीएम मोदी ने आकर कांग्रेस की नीति पलट दी है. अब अरुणाचल प्रदेश में काम हो रहा है. वहां एयरपोर्ट बना रहा है, बिजली, पीने का पानी, 4 जी नेटवर्क.. सब पहुंच चुका है. चीन को समझ जाना चाहिए कि यह नया भारत है.”
भारत के इस बदले रुख के आदी नहीं है चीन
रिजिजू ने कहा, “मोदी सरकार कांग्रेस जैसी नहीं है. इसलिए चीन हमसे चिढ़ गए हैं, क्योंकि भारत के इस रुख के आदी नहीं हैं. चीन भारत की नम्र सरकार के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्रों के प्रति शांतिवादी नीति के आदी थे. इसलिए इससे वे न सिर्फ भड़क गए हैं, बल्कि भारत सरकार से चिढ़े भी हुई हैं. लेकिन चीन को समझना होगा कि मोदी सरकार हमारे क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए किसी भी तरह की समझौतावादी नीति नहीं अपनाएंगे.”

चीन ने बदले इन जगहों के नाम
‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ के मुताबिक, चीन ने अरुणाचल के 11 रिहायशी इलाकों, 12 पर्वती इलाकों, 4 नदियों, एक तालाब और एक पहाड़ों से निकलने वाले रास्ते का नाम बदला है. चीन ने इन नामों को चीनी, तिब्बती और रोमन में जारी किया. पिछले 7 सालों में ऐसा चौथी बार हुआ है जब चीन ने अरुणाचल की जगहों का नाम बदला हो. इससे पहले चीन ने अप्रैल 2023 में अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश की 11 जगहों के नाम बदल दिए थे.

विदेश मंत्रालय ने चीन के कदम को किया सिरे से खारिज
भारत ने हर बार चीन की इन हरकतों को दृढ़ता से खारिज किया है. भारत के विदेश मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का नाम बदलने की चीन की कोशिशों को खारिज करते हुए कहा, “मनगढ़ंत नाम रखने से यह वास्तविकता बदल नहीं जाएगी कि यह राज्य भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है, रहा है और हमेशा रहेगा.”

ये नया भारत है, नहीं करेगा समझौता- रिजिजू
अर्थ साइंस और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज मिनिस्टर किरेन रिजिजू ने कहा, “जो अरुणाचल पश्चिम से सांसद हैं. वो इस लोकसभा चुनाव में फिर से उसी सीट से चुनाव लड़ेंगे. मुझे लगता है कि चीन को अचानक एहसास हुआ है कि भारत में अब एक ऐसी सरकार है, जो किसी भी चीज पर समझौता नहीं करेगी. खासतौर पर हमारी क्षेत्रीय अखंडता और हमारी सीमा को सुरक्षित करने के प्रयासों के संबंध में हम कोई समझौता किसी भी सूरत में नहीं करेंगे.”

यूपीए सरकार पर लगाए सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास नहीं करने के आरोप
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “चीनी अधिकारियों के हालिया बयानों में अरुणाचल प्रदेश समेत सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से हो रहे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और दूसरे कामों की शिकायत की गई है. इसका मतलब है कि 2014 कांग्रेस और यूपीए सरकार ने अपनी नीतियों के जरिए लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश को जानबूझकर उपेक्षित और अविकसित छोड़ दिया था.” रिजिजू ने दावा किया कि 2013 में तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने संसद में स्वीकार किया था कि एक सोची समझी नीति के जरिए चीन के सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास नहीं करने का फैसला लिया गया था.

कांग्रेस का तर्क बेतुकापूर्ण
किरेन रिजिजू ने कहा, “लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में विकास के काम नहीं कराने के पीछे यूपीए की सरकार ने जो कारण दिए, वे हमारे लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य थे. कारण भी मूर्खतापूर्ण था. यह एक पराजयवादी दृष्टिकोण और नीति थी. कांग्रेस ने कहा कि सड़कों और पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल चीन हमारे देश पर हमले के लिए कर सकता है.” केंद्रीय मंत्री ने कहा, “इसका सीधा मतलब है कि कांग्रेस ने एक तरह से यह बता दिया था कि इन क्षेत्रों को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं किया जाना चाहिए. यानी उन्हें चीनियों के कब्जे के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए.”

फरवरी में भारत-चीन के बीच हुई थी 21वें दौर की मीटिंग
LAC बॉर्डर पर स्थिति सामान्य करने को लेकर 19 फरवरी को दोनों देशों के बीच 21वें राउंड की कॉर्प्स कमांडर लेवल मीटिंग हुई थी. चुशुल-मोल्डो बॉर्डर पॉइंट पर हुई इस मीटिंग में भारत-चीन के बीच सकारात्मक चर्चा हुई. न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, चीन ने कहा था कि दोनों देशों ने LAC को लेकर एक-दूसरे की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए हल निकालने पर सहमति जताई. हालांकि, भारत ने कहा था कि चीन ने देपसांग और डेमचोक के ट्रैक जंक्शन से सेना हटाने की भारत की मांग को ठुकरा दिया. बता दें कि गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं.

“वास्तविकता बदल नहीं जाएगी”: अरुणाचल की जगहों का नाम बदलने के चीन के प्रयासों को भारत ने किया खारिज

गलवान घाटी में क्या हुआ था?
साल 2020 अप्रैल-मई में चीन ने ईस्टर्न लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में अभ्यास के बहाने सैनिकों की तैनाती बढ़ाई थी. इसके बाद कई जगह पर घुसपैठ की घटनाएं हुईं. भारत सरकार ने भी इस इलाके में चीन के बराबर संख्या में सैनिक तैनात कर दिए. 15 जून को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे.

गलवान झड़प में चीन के 38 सैनिक मारे जाने की बात कही गई थी. हालांकि, चीन ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सिर्फ 4 सैनिकों की मौत की बात कबूली थी.

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