पाक और चीन मिलकर भारत में अलगाववाद को तालिवान के सहारे बढ़ावा देने के फ़िराक में

नई दिल्ली:खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादी गुटों को तालिबान के रूप में नया हथियार मिल गया है। तालिबान की मदद से भारत के पंजाब और कश्मीर में अस्थिरता की खतरनाक योजना बनाई जा रही है। खुफिया एजेंसियों के पास आईएसआई के खतरनाक प्लान का ठोस इनपुट है। हडसन थिंकटैंक की उस रिपोर्ट को भी सुरक्षा एजेंसियों ने गंभीरता से लिया है,जिसमे बताया गया है कि खालिस्तान और कश्मीरी अलगाववादी गुट आईएसआई की फंडिंग से अमेरिका में भारत विरोधी जमीन पुख्ता करने में जुटे हैं। हालांकि राहत की बात है कि पंजाब में इन अलगाववादी समूहों का कोई मजबूत आधार नही है। फिर भी आईएसआई और अलगाववादी समूहों की सक्रियता से सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं।
सिख अलगाववादी समूहों की तरफ से तालिबान को एक मिलियन यूएस डॉलर की मदद की पेशकश की गई है। इसे नया गठजोड़ बनाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। इस खतरनाक प्लान को पर्दे के पीछे से चीन की भी शह बताई जा रही है। सुरक्षा व खुफिया एजेंसिया काबुल में तालिबानी कब्जे के बाद से जिन नए खतरो की पड़ताल कर रही हैं। उनमें से एक ठोस बिंदु यह भी है।
हडसन थिंकटैंक की रिपोर्ट में अमेरिकी जमीन पर खालिस्तानी गुटों की सक्रियता और इनके खिलाफ कार्रवाई न होने को चिंताजनक बताया है। जानकारी के मुताबिक अमेरिका में करीब 55 आपस मे जुड़े हुए खालिस्तानी व कश्मीरी अलगाववादी गुट सक्रिय हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्वाड बैठक के लिए प्रस्तावित अमेरिकी दौरे के वक्त इन अलगाववादी गुटों ने व्यापक विरोध की भी चेतावनी दी है। भारतीय एजेंसियां इस संबंध में अमेरिकी अधिकारियों के संपर्क में बनी हुई हैं। माना जा रहा है कि भारतीय प्रधानमंत्री जो बाइडेन से द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान तेजी से पनप रहे नए सुरक्षा खतरो पर भी बात करेंगे। हालांकि राहत की बात यह है कि पंजाब में इन गतिविधियों का ज्यादा असर नही है। खालिस्तान रेफरेंडम को भी पंजाब में आधार नही मिल पाया था। जो थोड़े बहुत अलगाववादी तत्व सक्रिय है उनपर सुरक्षा एजेंसियों की पैनी नजर है।
सुरक्षा एजेंसियों की चिंता ये है कि गुलाम नबी फाई, गुरपतवंत पन्नू जैसे किरदार भारत में प्रतिबंधित होने के बावजूद अमेरिका में खासे सक्रिय हैं। गुलाम नबी फाई को आईएसआई के एजेंट के तौर पर जाना जाता है। वही पन्नू खुलेआम भारतीय पंजाब राज्य को खालिस्तान बनाने की पैरोकारी करता है। सूत्रों ने कहा कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां लगातार इस मुद्दे को अमेरिका के सामने उठाती रही हैं।
शांतिपूर्ण आंदोलन का जामा पहनाकर अलगाववादी गतिविधियों के खतरनाक इरादों की पोल भारत ने कुछ समय पहले अपने डोजियर में भी खोली थी। अमेरिकी एजेंसियों को भी इसकी जानकारी है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस और एफबीआई के दस्तावेजों के मुताबिक, 2011 में गिरफ्तार किए गए फई को आईएसआई और पाकिस्तान सरकार से 1990 से 35 लाख डॉलर करीब 26 करोड़ रुपये मिल चुके थे।
एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि कश्मीर में पाकिस्तान के साथ पर्दे के पीछे चीन की शह का पता चला है। चीन के बने हथियार और ड्रोन आतंकियो को मिले हैं। एजेंसियां इस खतरे को पंजाब में भी महसूस कर रही हैं। खासतौर पर गलवान की घटना के बाद से चीन का आईएसआई के जरिये भारत मे अस्थिरता की योजना को मदद करने की जानकारी एजेंसियों के पास है। हडसन की रिपोर्ट में चीन की भूमिका का सीधे उल्लेख नही है। लेकिन भारतीय एजेंसियों के पास पुख्ता जानकारी है कि आईएसआई को चीन से मदद मिल रही है।
सुरक्षा एजेंसी से जुड़े सूत्रों ने कहा कि तालिबान से आईएसआई की नजदीकी ने नए खतरों के प्रति आगाह किया है। पिछले एक महीने के दौरान भारतीय एजेंसियां इन खतरो से निपटने की रणनीति पर मशक्कत कर रही हैं। खुफिया एजेंसियों के देश व्यापी नेटवर्क को ज्यादा सक्रिय करने और त्वरित सूचनाओं के आदान प्रदान पर एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं। नैटग्रिड को भी जल्द से जल्द सक्रिय करने की रणनीति पर काम हो रहा है।
हडसन इंस्टीट्यूट ने पिछले हफ्ते प्रकाशित अपनी रिपोर्ट ‘पाकिस्तान का अस्थिरता का षड्यंत्र : अमेरिका में खालिस्तान की सक्रियता में कहा था कि पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादी संगठनों की तरह, खालिस्तानी संगठन नए नामों के साथ सामने आ सकते हैं। इसमें कहा गया, दुर्भाग्य से अमेरिकी सरकार ने खालिस्तानियों द्वारा की गई हिंसा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, जबकि खालिस्तान अभियान के सबसे कट्टर समर्थक ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में हैं।