भारतीय स्टूडेंट्स के लिए यूक्रेन कैसे बना मेडिकल एजुकेशन का पसंदीदा डेस्टिनेशन !!
देहरादून- डॉक्टर बनने के सपने के साथ देहरादून के छात्र सूर्यांश सिंह बिष्ट 2019 में बैचलर ऑफ मेडिसिन और बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) करने के लिए यूक्रेन गए. वर्तमान में युद्धग्रस्त देश यूक्रेन में पोलैंड की सीमा के करीब ल्वीव शहर के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में द्वितीय वर्ष के छात्र सूर्यांश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, मगर इससे भी अधिक वह अपनी पढ़ाई के बारे में चिंतित हैं. सूर्यांश ने बताया कि छात्रों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. हम डिटेल्स इकट्ठा कर उन्हें कॉलेज को भेज रहे हैं. पता नहीं हम बाकी कोर्स को ऑनलाइन या ऑफलाइन कैसे पूरा कर पाएंगे. सूर्यांश अन्य भारतीय छात्रों के साथ एक बंकर में रह रहा है, जबकि शहर के ऊपर रूसी लड़ाकू विमान मंडरा रहे हैं.
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दरअसल, सूर्यांश यूक्रेन के विभिन्न शहरों में फंसे हजारों भारतीय छात्रों में से एक है और उनमें से अधिकांश एमबीबीएस या पशु चिकित्सा पाठ्यक्रम में बैचलर डिग्री प्रोग्राम कर रहे हैं. जबकि युद्धग्रस्त इलाकों में फंसे छात्र यूक्रेन से निकलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, पूर्व सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता तरुण विजय हैरान हैं कि आखिर किस वजह से छात्रों ने यूक्रेन को शिक्षा के लिए बेहतर जगह माना है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘हैरान हूं. किस वजह से हमारे बीस हजार युवा भारत छोड़कर यूक्रेन को शिक्षा के लिए एक बेहतर जगह मानते हैं?’
भाजपा नेता भले ही इस प्रश्ना का जवाब मांग रहे हैं, मगर जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को यूक्रेन भेजा है, वे अपनी पसंद को लेकर स्पष्ट हैं. सूर्यांश की मां रश्मि बिष्ट का कहना है कि कई वजहों से भारत में मेडिकल एजुकेशन का खर्च वहन करना मुश्किल है. सूर्यांश की मां एक केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाती हैं. उन्होंने आगे कहा कि भारत में भारी लागत, भयंकर कंपटीशन और मेडिकल एजुकेशन में आरक्षण प्राथमिक कारण हैं,
जो माता-पिता को अन्य विकल्पों की तलाश करने के लिए मजबूर करते हैं. हमारे केस में एक इंडियन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज ने प्रवेश देने के लिए 12 लाख वार्षिक शुल्क के अलावा एक करोड़ की कैपिटेशन फीस मांगी थी. रश्मि आगे कहती हैं कि हमारे परिवार ने एमबीबीएस के लिए यूक्रेन को चुनने का फैसला किया क्योंकि वहां बेहतर बुनियादी ढांचा और शिक्षक, शिक्षण का अंग्रेजी तरीका और छात्रों के लिए अच्छा एक्सपोजर है. इन सबसे ऊपर वहां अफॉर्डेबल एजुकेशन है.
एक सरकारी डॉक्टर, डॉ. डी.पी. जोशी भी इस बात से सहमत हैं. इनका बेटा उत्तर-पूर्व यूक्रेन के खार्किव शहर में मेडिकल एजुकेशन प्राप्त कर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि जहां तक भारतीय छात्रों में विदेशी शिक्षा का पसंदीदा विकल्प की बात करें तो इस मामले में पिछले दशक में यूक्रेन ने रूस को पीछे छोड़ दिया है. उनका कहना है कि पढ़ाने का तरीका और माहौल एक बड़ा कारण है. दिलचस्प बात यह है कि भारत में जहां किसी को भी मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए प्रवेश परीक्षा देनी होती है, इसके विपरीत यूक्रेन के कॉलेज सीधे प्रवेश देते हैं. लेकिन पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद ऐसे छात्रों को भारत में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा आयोजित एक स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना होता है.
नई दिल्ली स्थित विदेशी शिक्षा सलाहकार शोबित जायसवाल ने बताया कि भारतीय मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेना कई लोगों के लिए एक सपना है. उन्होंने कहा कि करीब 18-20 हजार भारतीय छात्र यूक्रेन के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ रहे हैं. शिक्षा की कम लागत और आसान प्रवेश प्रक्रिया के कारण फिलीपींस और यूक्रेन को प्राथमिकता दी जाती है. शोबित के अनुसार, यूक्रेन में 6 साल के एमबीबीएस कोर्स को पूरा करने की फीस लगभग 19-22 लाख है और अतिरिक्त खर्च 12-15 लाख रहने की लागत और वीजा शुल्क के रूप में है.
उनका कहना है कि जहां तक भारतीय छात्रों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट पास करने की बात है तो यूक्रेन का रिकॉर्ड बेदाग रहा है. उन्होंने कहा कि जब भारत में अधिकांश छात्रों के लिए इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट एजुकेश सुलभ है, तो अधिकारियों को चिकित्सा शिक्षा के लिए इसी तरह के दरवाजे खोलने से क्या रोकता है. यह उचित समय है कि सरकारी अधिकारियों को अपनी नीतियों और ढांचे की समीक्षा करनी चाहिए.