उत्तर प्रदेशराजनीति
गुलाम नबी ने दिए संकेत, शीला दीक्षित को मिल सकती है UP चुनाव की कमान
लखनऊ.कभी मायावती, कभी बीजेपी को जिताने में वाले फ्लोटिंग वोर्टस के रूप में शामिल प्रदेश के 11 फीसदी ब्राहमणों को लुभाने के लिए यूपी कांग्रेस के चुनाव की कमान शीला दीक्षित को मिल सकती है। उन्हें यूपी की राजनीति में सक्रिय करने के पीछे यूपी कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि शीला दीक्षित यूपी से सांसद रही हैं और वह चुनाव प्रचार अभियान का हिस्सा हो सकती हैं। उधर, शीला दीक्षित ने भी कहा है कि यूपी में उनकी ससुराल है। ऐसे में पार्टी की तरफ से मिली जिम्मेदारी को निभा सकती हैं। चौतरफा लड़ाई में शीला होंगी मुफीद…
– यूपी कांग्रेस के इलेक्शन स्ट्रैटजिस्ट प्रशांत किशोर साल के अंत में होने वाले चुनाव को चौतरफा लड़ाई में तब्दील करने की जुगत में हैं।
– यूपी की 403 विधानसभा सीट में प्रशांंत की कोशिश कम से कम 100 सीटों पर कांग्रेस को जीत दिलाने की है।
– ऐसे में सपा-बसपा और बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए शीला दीक्षित मुफीद साबित होंगी।
– शीला दीक्षित राजनीति में बड़ा नाम हैं और उत्तर प्रदेश में उनकी राजनीतिक जमीन है।
– शीला दीक्षित की ससुराल यूपी के उन्नाव जिले में है। इसका लाभ उन्हें मिल सकता है।
– वह 1984 से लेकर 1989 तक यूपी के कन्नौज सीट से सांसद भी रही हैं।
– पार्टी का चेहरा बनने से पार्टी ब्राहमण वोटों को अपनी तरफ कर सकती है।
चुनाव में कांग्रेस खेलेगी ब्राहमण कार्ड
– यूपी कांग्रेस के लिए रणनीति तैयार कर रहे प्रशांंत किशोर ने हाईकमान को यूपी चुनाव में ब्राह्मण कार्ड खेलने की राय दी है।
– हालांकि, पार्टी नेता अभी इस मामले पर कुछ भी कहने से इनकार कर रहे हैं।
– शायद यही वजह है कि बेनी प्रसाद वर्मा ने पार्टी से खुद को अलग कर लिया।
– दरअसल, प्रदेश में तीन दशक पहले तक ब्राह्मण वोट बैंक कांग्रेस का कै़डर माना जाता था।
– इस कारण पार्टी का परफारमेंस भी चुनावों में अच्छा रहता था। जब से यह वोट बैंक बीजेपी से जुड़ा है तब से पार्टी की स्थिति खराब होती गई।
– यूपी में दलित वोट बैंक बसपा के माने जाते हैं। इसके अलावा कई छोटी पार्टियों का भी जातिगत आधार पर अच्छा जनाधार है।
– भाजपा भी दलित कार्ड खेलना चाहती है, इसलिए कांग्रेस उसके तोड़ के रूप में ब्राह्मण चेहरा लाना चाहती है।
– ऐसे में कांग्रेस के पास एकमात्र विकल्प ब्राह्मण हैं। यूपी में ब्राह्मण वोट बैंक अच्छा खासा है। अगर यह पार्टी के पास लौट आया तो सीटों की संख्या बदलने में दिक्कत नहीं होगी।
कन्नौज सीट से पहली बार शीला पहुंची संसद
– दिल्ली में कांग्रेस को शिखर पर पहुंचाने वालीं 78 साल की शीला दीक्षित पहली बार 1984 में यूपी के कन्नौज सीट से सांसद बनकर संसद पहुंची थी।
– सासंद का चुनाव जीतने के बाद वह राजीव गांधी के मंत्रीमंंडल में पीएम ऑफिस की मंत्री बनी।
– 1998 में कांग्रेस ने उन्हें पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और चुनाव हारने के बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी गई।
– 1998 के विधानसभा चुनाव से शीला दीक्षित ने जीत का जो सिलसिला शुरू किया वह 2008 तक जारी रहा।
– 2013 में आम आदमी पार्टी (आप) की आंधी में कांग्रेस का यह किला ढह गया।
– 2013 में चुनाव हारने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल पार्टी ने बना दिया था।
– 2014 में बीजेपी की सरकार केंंद्र में बनने के बाद शीला ने इस्तीफा दे दिया।