धर्म - अध्यात्म
किसने बचाया उन्हें? क्यों युधिष्ठिर का वध करना चाहते थे अर्जुन
महाभारत हिंदू संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। शास्त्रों में इसे पांचवा वेद भी कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। महाभारत में ऐसी अनेक कथाएं व विचित्र प्रसंग है, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। इन्हें न तो कभी दिखाया गया और न ही बताया गया है। आज हम आपको महाभारत का एक ऐसा ही अनसुना प्रसंग बता रहे हैं।
अर्जुन अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को बहुत ही मान- सम्मान देते थे, ये बात सभी जानते हैं, लेकिन यह बात बहुत कम जानते हैं कि एक बार अर्जुन ने युधिष्ठिर का वध करने के लिए तलवार उठा ली थी। महाभारत के कर्ण पर्व में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। जब श्रीकृष्ण को लगा कि अर्जुन युधिष्ठिर का वध कर देंगे तब उन्होंने अर्जुन को शांत किया। अपने अपमान से आहत होकर युधिष्ठिर युद्ध छोड़कर वन जाने लगे। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें भी समझाया।
कर्ण से पराजित हो गए थे युधिष्ठिर
अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर का वध करने के लिए शस्त्र उठाने का प्रसंग महाभारत के कर्ण पर्व में मिलता है। इस प्रसंग के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद कर्ण को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया। सेनापति बनते ही कर्ण ने पांडवों की सेना में खलबली मचा दी। कर्ण द्वारा अपनी सेना का सफाया होते देख युधिष्ठिर को भी क्रोध आ गया और वे कौरवों की सेना का नाश करने लगे। तब दुर्योधन ने कर्ण को कहा कि वह युधिष्ठिर को बंदी बना ले।
कर्ण और युधिष्ठिर के बीच भीषण युद्ध हुआ। कर्ण ने अपने तीखे बाणों से युधिष्ठिर को घायल कर दिया। युधिष्ठिर को घायल देख सारथी उन्हें युद्ध से दूर ले गया। युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए दुर्योधन आदि महारथी उनके पीछे दौड़े, लेकिन नकुल और सहदेव ने पराक्रम दिखाकर उन्हें रोक लिया। कर्ण से पराजित होकर युधिष्ठिर को बड़ी लज्जा आ रही थी।
कर्ण और युधिष्ठिर के बीच भीषण युद्ध हुआ। कर्ण ने अपने तीखे बाणों से युधिष्ठिर को घायल कर दिया। युधिष्ठिर को घायल देख सारथी उन्हें युद्ध से दूर ले गया। युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए दुर्योधन आदि महारथी उनके पीछे दौड़े, लेकिन नकुल और सहदेव ने पराक्रम दिखाकर उन्हें रोक लिया। कर्ण से पराजित होकर युधिष्ठिर को बड़ी लज्जा आ रही थी।
जब अर्जुन व श्रीकृष्ण गए युधिष्ठिर से मिलने
घायल युधिष्ठिर को नकुल-सहदेव छावनी लेकर आए और उपचार करने लगे। कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय के बारे में जब अर्जुन को पता लगा, तो उन्हें बहुत दु:ख हुआ और वे श्रीकृष्ण के साथ अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को देखने उनकी छावनी में पहुंचे। अर्जुन और श्रीकृष्ण को एक साथ देखकर धर्मराज युधिष्ठिर ने समझा कि अर्जुन ने कर्ण का वध कर मेरी पराजय का बदला ले लिया है।
यह सोचकर वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अर्जुन को गले लगा लिया, लेकिन बाद में जब युधिष्ठिर का पता चला कि अर्जुन ने कर्ण का वध नहीं किया है, तो उन्हें अर्जुन पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने अर्जुन को खूब खरी-खोटी सुनाई। युधिष्ठिर ने अर्जुन को अपने शस्त्र दूसरे को देने के लिए कह दिया। यह सुनते ही अर्जुन को बहुत क्रोध आया और उन्होंने युधिष्ठिर को मारने के लिए तलवार उठा ली।
यह सोचकर वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अर्जुन को गले लगा लिया, लेकिन बाद में जब युधिष्ठिर का पता चला कि अर्जुन ने कर्ण का वध नहीं किया है, तो उन्हें अर्जुन पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने अर्जुन को खूब खरी-खोटी सुनाई। युधिष्ठिर ने अर्जुन को अपने शस्त्र दूसरे को देने के लिए कह दिया। यह सुनते ही अर्जुन को बहुत क्रोध आया और उन्होंने युधिष्ठिर को मारने के लिए तलवार उठा ली।
श्रीकृष्ण ने कैसे रोका अर्जुन को?
अर्जुन ने जैसे ही युधिष्ठिर को मारने के लिए तलवार उठाई, श्रीकृष्ण उसकी मंशा ताड़ गए और उन्होंने अर्जुन को रोक दिया। तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण को बताया कि- मैंने गुप्त रूप से यह प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई मुझसे ऐसा कहेगा कि तुम अपना गांडीव दूसरे को दे डालो, मैं उसका सिर काट लूंगा। इसलिए धर्मराज का वध करने के लिए मैं प्रतिज्ञाबद्ध हूं। अर्जुन की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे धर्म-अधर्म का ज्ञान दिया।
तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरी प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाए और मैं भाई की हत्या के अपराध से भी बच जाऊं। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि सम्माननीय पुरुष जब तक सम्मान पाता है, तब तक ही उसका जीवित रहना माना जाता है। जिस दिन उसका बहुत बड़ा अपमान हो जाए, उस समय वह जीते-जी मरा समझा जाता है। तुमने सदा ही धर्मराज युधिष्ठिर का सम्मान किया है। आज तुम उनका थोड़ा अपमान कर दो।
तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरी प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाए और मैं भाई की हत्या के अपराध से भी बच जाऊं। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि सम्माननीय पुरुष जब तक सम्मान पाता है, तब तक ही उसका जीवित रहना माना जाता है। जिस दिन उसका बहुत बड़ा अपमान हो जाए, उस समय वह जीते-जी मरा समझा जाता है। तुमने सदा ही धर्मराज युधिष्ठिर का सम्मान किया है। आज तुम उनका थोड़ा अपमान कर दो।