खेल
असंभव को भी बना दिया संभव, दीपा की लाइफ के असली हीरो हैं ये जनाब
स्पोर्ट्स डेस्क. रियो ओलिंपिक में धमाल मचाने वाली इंडियन जिमनास्ट दीपा कर्माकर (22 साल) के सक्सेस के पीछे के असली हीरो उनके कोच बिश्वेश्वर नंदी हैं। अगर नंदी ने ईमानदारी न दिखाई होती तो आज दीपा जिमनास्ट न होतीं। उन्होंने एक 6 साल की बच्ची के जज्बे को देखते हुए वो कर दिखाया, जिसे कर पाना असंभव माना जाता है। क्या कहानी है दीपा कर्माकर और उनके कोच की…
– त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में 9 अगस्त, 1993 को जन्मी दीपा जब 6 साल की ही थीं तो उनपर जिमनास्ट बनने का भूत सवार हो गया।
– लेकिन रास्ता आसान नहीं था। इसका कारण उनका पैर फ्लैट होना था। ऐसे में कोई जिमनास्ट नहीं बन सकता।
– जब वे कोच बिश्वेश्वर नंदी के पास गईं तो उन्होंने दीपा को उनकी सबसे बड़ी कमी बताई और ट्रेनिंग न लेने की सलाह दी।
– लेकिन बच्ची के जज्बे को देखते हुए उन्होंने वो करने की ठानी जिसे शायद ही कोई कोच कर सके।
– उन्होंने दीपा पर मेहनत करनी शुरू कर दी। कई सालों की लगातार मेहनत रंग लाई और दीपा का फ्लैट फीट कर्व में बदल गया।
– उसके बाद शुरू होती है ऊंचाइयां छूने की कहानी जो अभी जारी है।
– लेकिन रास्ता आसान नहीं था। इसका कारण उनका पैर फ्लैट होना था। ऐसे में कोई जिमनास्ट नहीं बन सकता।
– जब वे कोच बिश्वेश्वर नंदी के पास गईं तो उन्होंने दीपा को उनकी सबसे बड़ी कमी बताई और ट्रेनिंग न लेने की सलाह दी।
– लेकिन बच्ची के जज्बे को देखते हुए उन्होंने वो करने की ठानी जिसे शायद ही कोई कोच कर सके।
– उन्होंने दीपा पर मेहनत करनी शुरू कर दी। कई सालों की लगातार मेहनत रंग लाई और दीपा का फ्लैट फीट कर्व में बदल गया।
– उसके बाद शुरू होती है ऊंचाइयां छूने की कहानी जो अभी जारी है।
दीपा की बड़ी सफलताएं
– दीपा पहली बार लाइम लाइट में तब आईं जब उन्होंने 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
– अगले ही साल, यानी 2015 में एशियन चैम्पियनशिप में भी उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता।
– अब 2016 में वे रियो ओलिंपिक में हैं और 14 अगस्त को उनके नाम एक और मेडल होने की पूरी उम्मीद है।
– अगले ही साल, यानी 2015 में एशियन चैम्पियनशिप में भी उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता।
– अब 2016 में वे रियो ओलिंपिक में हैं और 14 अगस्त को उनके नाम एक और मेडल होने की पूरी उम्मीद है।