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पश्चिम बंगाल: चुनावी जंग के लिए विरोधियों को कमजोर कर खुद को मजबूत कर रही है भाजपा

कोलकाता। |अबकी बार, दो सौ पार’ के नारे के साथ मिशन बंगाल के लिए निकली भाजपा ने राज्य के विभिन्न दलों में सेंध लगाकर अपनी ताकत बढ़ाने शुरू कर दी है। शनिवार को भाजपा नेता व गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में तृणमूल के वरिष्ठ नेता शुभेंदु अधिकारी के साथ एक सांसद और विधायकों ने भाजपा का दामन थामा। इससे साफ है कि राज्य में माहौल बदल रहा है और भाजपा तेजी से मजबूती की तरफ बढ़ रही है।

बीते दस साल में तृणमूल कांग्रेस को पहली बार सबसे कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है। बाहर से भाजपा तो उसे चुनौती दे ही रही है उसके भीतर का असंतोष भी बाहर आने लगा है। बीते पांच साल में उसके कई सांसदों और विधायकों के पार्टी छोड़ने से साफ है कि अब की बार ममता बनर्जी को सत्ता में रहते हुए सबसे कड़ा मुकाबला करना पड़ेगा। खास बात यह है कि भाजपा तृणमूल के साथ कांग्रेस और वामपंथी दलों को भी निशाना बना रही है और उसके कई प्रमुख नेताओं को अपने पाले में ला रही है।

दरअसल पश्चिम बंगाल में भाजपा जमीनी स्तर पर उतनी मजबूत नहीं है, जितनी कि वह अन्य राज्यों में रही है। कई जिलों में तो उसका संगठन भी कमजोर है। ऐसे में उसे अपनी ताकत बढ़ाने के लिए दूसरे दलों के मजबूत नेताओं और कार्यकर्ताओं की जरूरत है। यही वजह है कि भाजपा ने बीते छह साल में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वामपंथी दलों के कई प्रमुख स्थानीय और प्रादेशिक नेताओं को अपने पाले में लाया है, ताकि पार्टी तृणमूल कांग्रेस की दबंगई का सामना कर सके
बीते लोकसभा चुनावों में 18 सीटें जीतकर भाजपा ने राज्य में अपनी विश्वसनीयता बनाई है और यही वजह है कि दूसरे दलों के नेता अब उसकी तरफ आने में हिचकिचाहट नहीं दिखा रहे हैं। अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए भाजपा ने मिशन बंगाल शुरू किया था और 2014 से लेकर अब तक के छह सालों में वह सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार बनकर उभरी है। बांग्लादेशी घुसपैठ से परेशान पश्चिम बंगाल को भाजपा ने उसकी अस्मिता से जोड़कर राजनीतिक शुरुआत की थी और अब दूसरे दलों में सेंध लगाकर अपनी चुनावी जमीन को और मजबूत कर रही है।

पश्चिम बंगाल की राजनीति में विधानसभा चुनाव के समय बढ़ने वाले राजनीतिक संघर्ष में अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को विरोधी दलों के हमलों से बचाने के लिए भाजपा को वहां के मजबूत नेताओं की जरूरत है। ऐसे नेता तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वामपंथी दलों में हैं इसलिए भाजपा इन दोनों को अपना निशाना बना रही है। इससे जहां वह मजबूत होगी वही विरोधी भी कमजोर होंगे। राजनीतिक दलों में सेंधमारी के साथ भाजपा किसानों के मुद्दे और भ्रष्टाचार को भी प्रमुखता से उठा रही है। ममता बनर्जी की सरकार के कई नेता इन आरोपों से घिरे है।

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