आजादी की लड़ाई में बाबा शाह की आवाज पर 84 गांव के लोगों ने हथियार उठाए

मेरठ । 1857 की (voice of) क्रांति की शुरुआत मेरठ शहर से हुई थी। मेरठ से करीब 60 किमी दूर बिजरौल गांव है। बिजरौल देश का पहला ऐसा गांव माना जाता है, जहां 1857 की क्रांति की चिंगारी आग में तब्दील हुई। बाबा शाह मल को पूरा गांव अपना मानता है, लेकिन उनके असल परिवार में 250 से ज्यादा लोग हैं। जीवन यापन के लिए सभी खेती पर निर्भर हैं। हमेशा अपने परदादा के नाम को पहचान दिलाने की कोशिश (voice of) में लगे रहते हैं।
यहां के जमींदार शाह मल ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। उनकी एक आवाज पर 84 खापों के 6 हजार से ज्यादा लोगों ने हथियार उठा लिए थे। उनकी डेड बॉडी करीब 4 घंटों तक जमीन पर पड़ी रही। खौफ के चलते किसी अंग्रेज की हिम्मत नहीं हुई कि उनके पास जा सके।
बिजरौल गांव में उनके नाम पर इंटर कॉलेज और उनका शहीद स्थल बना हुआ है। एकदम शांत गांव में जितने भी लोग मिले कोई शाह मल को बाबा कहता है तो कोई दादा। उनकी लीडरशिप में लोगों ने प्राचीन तलवारों और भालों के दम पर आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश सैनिकों से भीषण लड़ाई लड़ी।
लड़ाई में शाह मल को गोली लगी और वो शहीद हो गए। जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब भास्कर की टीम बाबा शाह मल के गांव बिजरौल पहुंची। शाह मल की शहादत के 165 साल बाद गांव के क्या हालात हैं? बाबा शाह मल के परिवार के लोग किन हालातों में हैं? उनके मन में क्या है? आइए बारी-बारी जानते हैं…