मंगल पर सूक्ष्मजीव बनाएंगे रॉकेट के लिए ईंधन

मंगल ग्रह पर मानव अभियान के लिए बहुत सी समस्याओं के समाधान तलाशने के लिए अलग-अलग शोध हो रहे हैं. इनमें से एक मंगल तक पहुंच कर वहां से लौटने के लिए ईंधन की व्यवस्था करना. मंगल तक की दूरी इतनी ज्यादा है कि वहां पहुंचने के लिए बहुत अधिक ईंधन लगेगा. इसके लिए मंगल पर वहां से लौटने के लिए पृथ्वी से ही ईंधन ले जाने के लिए और ज्यादा ईंधन की जरूरत होगी क्यों इससे ईंधन ले जाने वाले यान का भार बहुत बढ़ जाएगा. ऐसे में मंगल पर ही ईंधन के निर्माण करने के विकल्प तलाशे जा रहे हैं. जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने मंगल पर ही रॉकेट ईंधन बनाने की अवधारणा विकसित की है जिससे भविष्य में मंगल से पृथ्वी तक मंगल यात्रीयों को वापस लाया जा सकेगा.
जॉर्जिया टेक की टीम का कहना है कि बायोइसरु के जरिए ईंधन उत्पादन, भोजन और रसायनों के लिए कारगर तकनीक विकसित करने के लिए दोनों ग्रहों के बीच के अंतर को स्वीकारना जरूरी है. इसी लिए शोधकर्ता मंगल के लिए बायोटेक्नोलॉजी के अनुप्रयोगों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे पृथ्वी के बाहर मानवीय उपस्थिति का सपना साकार किया जा सकेगा.
इस जैवउत्पादन की प्रक्रिया में मंगल के तीन स्रोतों का उपयोग किया जा सकेगा- कार्बन डाइऑक्साइड, सूर्य की रोशनी और जमा हुआ पानी. इसके लिए मंगल ग्रह पर दो तरह के सूक्ष्म जीवों को भी भेजना होगा. इसमें एक तो शैवाल वाले साइनोबैक्टीरिया होगें जिनका काम मंगल के वायुमडंल की कार्बनडाइऑक्साइड को लेना होगा और सूर्य की रोशनी के उपयोग से शक्कर बनेगी. दूसरे सूक्ष्म जीवे के रूप में इंजीनियर्ज ई कोली को भी पृथ्वी से ही मंगल पर भेजने की जरूरत होगी. जो इस शक्कर को मंगल के लिए जरूरी रॉकेट प्रोपेलेंट में बदलने का काम करेगा. फिलहाल मंगल के लिए इस प्रोपोलेंट, जिसे 2,3 ब्यूटेनेडायोल कहा जाता है, का उपयोग रबर उत्पादन में पॉलीमर को बनाने के लिए किया जाता है.
यह अध्ययन नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित हुआ है. फिलहाल मंगल के लिए भेजने वाले रॉकेट इंजनों के लिए मीथेन और तरल ऑक्सीजन को ईंधन के तौर पर उपयोग में लाने की योजना है जिनमें से दोनों ही मंगल ग्रह पर मौजूद नहीं हैं जिसका मतलब है कि उन्हें पृथ्वी पर से ही ले जाना होगा. यह परिवहन (Transportation) ही बहुत खर्चीला हो जाएगा जिसमें 30 टन का मीथेन और तरल ऑक्सीजन लेजाने की लगात करीब 8 अरब डॉलर हो जाएगी. इसके लिए नासा ने मंगल पर कार्बन डाइऑक्साइड को ही तरल ऑक्सीजन में बदलने का प्रस्ताव रखा है. फिर भी मंगल तक तब भी मीथेन को ले ही जाना पड़ेगा. शोधकर्ताओं ने इसके विकल्प के तौर पर ईंधन तरल ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड से ही बनाने के लिए बायोतकनीक आधारित इन सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन का प्रस्ताव दिया है. इस तकनीक से 44 टन की अतिरिक्त साफ ऑक्सीजन बनेगी जिसे दूसरे उद्देशयों के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है.
फिलहाल में मंगल पर कार्बन डाइऑक्साइड ही उपलब्ध स्रोत है. शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवविज्ञान CO2 को रॉकेट ईंधन (Rocket Fuel) के उपयोगी उत्पादों में बदल सकता है. इस शोधपत्र में पूरी प्रक्रिया को समझाया गया है. जिसमें मंगल पर कुछ प्लास्टिक के पदार्थ ले जाए जाएंग जिन्हें वहां फोटो बायो रिएक्टर के तौर पर एसेंबल कर दिया जाएगा. जो चार फुटबॉल के मैदान के बराबर के आकार का होगा. साइनोबैक्टीरिया वहां फोटोसिंथेसिस के जरिए ऊगाए जाएंगे. एक दूसरे रिएक्टर एनजाइम साइनोबैक्टीरिया को शक्कर में बदलेंगे जिसे ई कोली को खिलाया जाएगा जो रॉकेट प्रोपेलेंट बनाएंगे. इस प्रोपेलेंट के ई कोली फर्मेंटेशन से अलग कर लिया जाएगा.
शोधकर्ताओं ने पाया कि बोया इसरू की युक्ति पृथ्वी से मंगल तक मीथेन ले जा कर रासायनिक उत्प्रेरक के मदद से ऑक्सीजन पैदा करे ने के उपाय की तुलना में 32 प्रतिशत कम शक्ति का उपयोग करती है, लेकिन यह तीन गुना ज्यादा भारी है. चूंकि मंगल का गुरुत्व पृथ्वी की तुलना में केवल एक तिहाई है, शोधकर्ताओं के पास ज्यादा रचनात्मक होने का मौका है. वहां उड़ान केलिए कम ऊर्जा लगेगी जिससे बहुत से रासायनिक विकल्पों पर विचार किया जा सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने उन विकल्पों पर भी विचार करना शुरू कर दिया है जो पृथ्वी पर कारगर नहीं होंगे, लेकिन कम गुरुत्व और ऑक्सीजन रहित वाले मंगल के लिए संभव हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि 23 ब्यूटेनेडायोल नया उत्पादन नहीं है, लेकिन इससे पहले उसे ईंधन के तौर पर उपयोग करने के लिए कभी विचार नहीं किया गया. शुरुआती विश्लेषण में एक मंगल के लिए बहुत तगड़ा उम्मीदवार माना गया है. अब शोधकर्ता अपने द्वारा विकसित की गई प्रक्रियाओं को और कारगर बनाने का प्रयास करेंगे. वे कोशिश करेंगे कि बायो इसरू की प्रक्रिया का भार कम करने और उसे प्रस्तावित रासायनिक प्रक्रिया से हलका बनाया जा सके. इसके अलावा मंगल पर साइनोबैक्टीरिया पैदा करने की गति बढ़ने से फोटो बायो रिएक्टर का आकार भी काफी कम हो सकता है. इससे पृथ्वी से मंगल के लिए ले जाने वाले उपकरण का बोझ भी कम हो सकेगा. इसके अलावा शोधकर्ताओं का यह भी दिखाना है कि मंगल के हालातों में साइनोबैक्टीरिया उगाए जा सकते हैं.