आतंकी होने का नहीं मिला सबूत,11 साल बाद बरी हुआ अहमद
वडोदरा. आतंकवाद रोधी बेहद सख्त कानून के तहत गुजरात की जेल में बंद श्रीनगर के बशीर अहमद उर्फ ऐजाज गुलामनबी बाबा को 11 साल बाद बीती जून में रिहाई मिल गई. आणंद के सत्र न्यायालय का कहना था कि ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिससे यह साबित हो सके कि व्यक्ति के संबंध आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े थे. साथ ही अदालत ने कहा है कि इस मामले में सबूत से ज्यादा ‘भावनात्मक’ दखल था. बाबा को 13 मार्च 2010 को आतंक रोधी दस्ते ने गिरफ्तार किया था.
चौथे अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एसए नकुम ने कहा कि अभियोजन ‘संदेह से परे इस बात को साबित करने में असफल रहा कि आरोपी ने कोई आतंकी गतिविधि की है या वह किसी आतंकी संगठन से जुड़ा हुआ है और या फिर उसने आतंकी गतिविधियों के लिए पैसा जुटाया है.’ कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयान सही नहीं थे, फॉरेंसिक्स ने पुलिस की तरफ से तैयार किए गए मामले का समर्थन नहीं किया. साथ ही यह भी कहा गया कि अहमद का ‘कुबूलनामा’ को सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
अदालत ने कहा, ‘सरकारी वकील की तरफ से दिए गए तर्कों में भावनाएं ज्यादा थीं. आपराधिक न्यायशास्त्र में शिकायतकर्ता पक्ष को बगैर संदेह के अपना मामला साबित करना होता है.’ कोर्ट ने कहा, ‘ऐसी कोई भी बात सामने नहीं आई, जो बताए कि आरोपी किसी तरह के आतंकी संगठन में शामिल था या आरोपी ने गुजरात के मुस्लिम युवाओं को आतंकी गतिविधियों की ट्रेनिंग के लिए भेजा था.’
मामले में मुख्य गवाह और क्लेफ्ट एंड क्रेनियोफेशियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के मनीष जैन ने कहा कि ऐसा लगा रहा था कि अहमद ट्रेनिंग में में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहा था. उन्होंने बताया कि वह कई बार नॉन-वेज भोजन के लिए होटल और घूमने-फिरने जाता था. अहमद चिकित्सा से जुड़ी ट्रेनिंग के लिए गुजरात आया था.
एक अन्य गवाह डॉक्टर आनंद विजयराज सोमेरी ने कहा कि अहमद कई बार अपने फोन पर पाकिस्तान और दुबई बात करता था. एटीएस ने कहा था कि सोमेरी को भी पाकिस्तानी नंबर से कॉल आया था, जिसके बाद उसे पता चला कि अहमद को बशीर बाबा कहा जाता था. इस दौरान एटीएस ने अहमद के खिलाफ श्रीनगर के करणनगर में एक्सप्लोसिव्स सब्स्टैंस एक्ट के तहत 2008 दर्ज हुई FIR भी पेश की थी. कहा गया था कि FIR में ‘HM’का इस्तेमाल प्रतिबंधित आतंकी संगठन के लिए किया गया था.
अदालत ने कहा कि दूर राज्य जम्मू-कश्मीर से आए आरोपी के लिए खाली समय में म्यूजियम जाना और नॉन-वेज खाने के लिए बाहर जाना आम बात है. कोर्ट ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है. इन तथ्यों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी ट्रेनिंग से ज्यादा आतंकी गतिविधियों में शामिल था. वहीं, क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान सोमेरी ने इस बात को माना कि वह ‘भाषा के कारण फोन पर अहमद की बातचीत को समझ नहीं पाया था.’
इस दौरान अदालत ने पुलिस जांच की भी आलोचना की. कोर्ट ने कहा कि वे इस बात की कोई जानकारी नहीं दे पाए कि 28 फरवरी से 23 मार्च तक आरोपी कहां था. कोर्ट ने कहा, ‘केवल इस तथ्य पर कि FIR में HM शब्द का इस्तेमाल हुआ है, यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़ा है.’
गुजरात एटीएस ने बाबा को आणंद से गिरफ्तार किया था. उनपर 2002 के दंगों के चलते नाराज मुस्लिम युवकों को हिजबुल मुजाहिदीन के लिए भर्ती करने के आरोप लगे थे. पुलिस ने आरोप लगाया था कि बाबा हिजबुल के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और अहमद शेरा के साथ फोन और ई-मेल के जरिए संपर्क में है. उसे हॉस्टल से गिरफ्तार किया गया था.